Book Title: Jain Katharnava
Author(s): Kailassagar Ganivar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie जैन कथा व: शुद्धिपत्रकम् जैनकथार्णवशुद्धिपत्रकम् अशुद्धम् शुद्धम् पृ० पं० अशुद्धम् शुद्धम् पृ० पं० अशुद्धम् शुद्धम् पृ० पं० पूर्वभवानि पूर्वभवाः ११ ७ दोपतः दोषतः ४११५ सेवये सेवाये ९१ ५ प्रकार्षाद् प्रकर्षाद् ११११ पन्त्ये पल्ये ४ २ १ तय तया क्वमागतम् क्रमागतम् १२ ६ सा शता ४२ ३ पिष्टि पिष्टे भुक्तकृत भुक्तकृते २१ ६ सङ्का ४२११ जापामाणि जातपाणि १२ १ २ हाराद्यलकाराः हाराधलङ्काराः१२१० सखेन। सुखेन ५११० मशिश्रयत् मशिश्रियत् ९२ ५ किश्चित किश्चित् २१ ८ चतुपष्टि चतुःषष्टि ५१११ घावक घातक ९२ ६ जीवीका जिविका २१ ८ पभू प्रभू ६१ २ धावितः धावितः ९२११ ग्राह ३१ ४ चतुःपष्टिगुणान् विहरन्त्यथ विहन्त्वथ १० ११२ च्युतः च्युतः ३१ ११ चतुःषष्टिं गुणान् ६२ १० व्यणीयु व्यतीयु १० २ ११ बभूयु बभूवु ३२ १४ घट घट ६२ ६ विधिना विधिना १११ २ प्रासध्य प्रसाध्य ४१ १ मशिश्रयत् मशिश्रियत् ७१ ५ शान्तीनाय शान्तिनाथ १११ ८ | महाहिया महाहियः ४२ २ प्रविशने प्रवेशने ९१ २ अशिश्रयत् अशिश्रियत् ११२ १-७ प्राह For Private and Personal Use Only

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