Book Title: Jain Katharnava
Author(s): Kailassagar Ganivar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेन कथा र्णवः श्री सुदर्शनश्रेष्ठिकथा // 12 // 器密紧张继器鉴樂张举縣器器器華亲带来袭举泰鑒 सामर्ष गणिकाऽप्याख्यत्, किं वर्णयसि ते भृशम् ? / अगुल्या नर्तयाम्यग्रे, यदि पश्यामि तं क्वचित् // 96 // भ्रमन् गोचरचर्यायां, दैवात् तत्रागतो मुनिः / कपटश्रावकीभूय, नीतः पण्डितया गृहे // 97 // बहुधा द्वारमुन्मुयाभ्यर्थितो देवदत्तया / मुनिन शीलमर्यादा, वात्ययाऽब्धिरिखामुचत् // 98 // ततो जातातिनिर्वेदो, मुनिनिर्गत्य तद्गृहात् / श्मशाने प्रतिमया तस्थौ, कर्मनिर्मूलनैकधीः // 99 // व्यन्तरीभूतया तत्राऽभययाऽत्युपसर्गितः / सुदर्शनमुनिया॑नातिरेकात् प्राप केवलम् // 10 // सुरैर्निर्मितमध्यास्य, सुवर्णकमलं मुनिः / मोहनिद्रापहां चक्रे, सुधादेश्यां स देशनाम् // 101 // केचित् यतित्वं केचिच्च, श्रावकत्वं, अपेदिरे / प्रबुद्धा चाभया देवदत्ता धान्यपि पण्डिता // 102 // भव्यारविन्दवदनानि विकाश्य तेजोराशिः सुदर्शनमुनिः स्वपदप्रचारैः। कर्मास्तभूधरमपास्य निरस्तशोकलोकाग्रमस्तकमणिश्रियमाससाद // 103 // इति श्री मुद्रित-ऋपिमण्डलप्रकरणवृत्तित उद्धृता श्री सुदर्शनश्रेष्ठीकथा संपूर्णा. 聚泰幣號樂器鉴器装器藥装装醛酸张张张器際旅號 發继器晓晓晓露器錄器端端器端端端张晓晓錄器端 - जैनकथार्णवः समाप्तः // 12 // 驚艷艷器器器聽器费號张馨盛路發聲器能帶盤器 For Private and Personal Use Only

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