Book Title: Jain Katha Sangraha Part 05
Author(s): Kalyanbodhivijay,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्रीजैन कथासंग्रहः
॥१॥
20-30 20 20 1 300 20 20 20 20 20 20 20 20 20
॥ अर्हम् ॥
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ।
। श्री प्रेम-भुवनभानु-पद्म- हेमचंद्र सद्गुरुभ्यो नमः ।
पूर्वाचार्यविहितं
श्रीदेवकुमारचरितम् ।
श्रेयः श्रीसद्यने तस्मै नमः श्रीनाभिजन्मने । यन्नामापि नृणां दत्ते, कल्पशाखीव कामितम् ॥ १ ॥
यस्याः प्रसादपरिवर्धितशुद्धबोधाः पारं व्रजन्ति सुधियः श्रुततोयराशेः । सानुग्रहा मयि समीहितसिद्धयेऽस्तु सर्वज्ञशासनरता श्रुतदेवताऽसौ ॥ २ ॥
प्राग्जन्मसुकृतान्मन्त्रसिद्धिबुद्धिसमृद्धयः । प्रभवन्ति नृणां देवकुमारस्येव भूतले ॥ १ ॥ तथाहि
॥ श्रीदेवकुमार चरित्रम् ॥
॥१॥

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