Book Title: Jain Katha Sangraha Part 05
Author(s): Kalyanbodhivijay,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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श्रीजैन कथासंग्रहः
॥९॥
1303-20811
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स्नानमण्डपे नीत्वाऽभ्यज्य ताः समवाहयत् । तथा यथाऽतिसौख्येन, न स किञ्चिदचेतयत् ॥ ९५ ॥ ततो मणिमयोत्सुङ्गाऽऽसनस्थं गन्धवारिभिः । तास्तमस्नपयन् स्वर्णकलशैरलसैः करैः ।। ९६ ।। रूक्षयित्वाङ्गमव्यङ्गवसनानि समर्प्य च । विलिप्य दत्त्वा कर्पूरमिश्रं ताम्बूलमप्ययम् ।। ९७ ।। अक्कयोचेऽत्र पल्यङ्के तावद्विश्रम्यतां क्षणम् । यावद्रसवती सर्वरसवत्युत्तमा भवेत् ॥ ९८ ॥ क्षणं विश्रम्य सौभाग्यमञ्जर्या स समन्वितः । निविष्टः स्थाल एकस्मिन्, शुष्कार्कफलशालिनम् ॥ ९९ ॥ सर्वेन्द्रियप्रीतिकरं रम्यं पानकपानतः । बलबुद्धिकरं भोज्यं, बुभुजे भूभुजां निभम् ॥ १०० ॥ ॥ युग्मम् ।। अथ प्रदोषे भोगाङ्गसमर्पणपुरस्सरम् । समं सौभाग्यमञ्जर्याऽजर्यान् भोगानभुङ्कं सः ॥ १ ॥ वेश्या तं निजविज्ञानगुणेनारञ्जयत्तथा । यथाऽमंस्त सं संसारसारमेतावदेव हि ॥ २ ॥ मुद्रां प्रेष्याकरे प्रेष्याऽऽनाययत्कनकं सदा । स्वर्णपञ्चशतीमानं स्नेहान्मातार्पयत्सदा ॥ ३ ॥ स्वर्ण यथा यथाभ्येति, प्रतिपत्तिं तथा तथा । अक्वा दर्शयते तस्य, लुब्धा परधनेऽधिकाम् ॥ ४ ॥ सुतां वक्त्यस्य भावेन, वर्तितव्यं सदा त्वया । सा तथा तं वशीचक्रे, यथाऽभूद्विरहासहः ॥ ५ ॥ सङ्गीतकुशलैः प्रेमाऽऽकुलैश्च प्रमदाकुलैः । तूर्यत्रिकं क्रियमाणं, कदाचन निरीक्षते ॥ ६ ॥ सौभाग्यमञ्जरीवाद्यमानां वीणां कदाचन । शृणोत्युखानिकाश्चापि कुरुते स कदाचन ॥ ७ ॥ गायकैर्गीयते गीतैबंदिभिः पठ्यते स तु । गृहे रत्नमये
BOSI I BE CUBE BOBE SEENEE | BIBE | BE SE | | | |
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॥ श्रीदेवकुमार
चरित्रम् ॥
॥९॥

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