Book Title: Jain Katha Sangraha Part 03
Author(s): Kalyanbodhivijay,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
श्रीजैन
सुव्रतऋषि कथानकम्।
कथासंग्रहः
॥३॥
DADO DADO DO DADO DO DA DA DA DA DO
OQ DO DA DA DA DO DO DODODO DADO DOD
सावजं विवजए सव्वं ॥ १४ ॥ इक्कारसी तिहिवरा, इक्कारंगस्स नामओ भाविया (?)। आराहओ' भत्तिपरा, भविया? भावेण वरसंतं ॥१५॥ मग्गसिरसेयइक्कारसीअ, सविसेसाऽऽराहियव्वा पयत्तेण। जिणकल्लाणगपन्नास(५०), तंमिय दिवसंमि य हवंति ॥ १६ ॥ पंचइ भरहमि पुणो पंचइ एरवयंमि समकालं । चउविसंपि जिणाणं, पंचयकल्लाणगाणि तओ ॥ १७ ॥ चाउद्दसीतवकरणं, आउस्सय बंधकरणहेउ त्ति । तह चउदस्सपुव्वाराहण, करणं मासाचउदसंपि ॥ १८ ॥ चउपुष्वीवि हु भणिया, अट्ठमीचउद्दसीय पुन्निमिया। अमावासाइ पुणो, तवोविहाणं जं ओदिढ॥१९॥ निस्सेससिद्धिलाभो, संवच्छरचाउमास्सिए सुय तिहिसु । सव्वायरेणजिणपूअ-पोसहोववासगुणनं च ॥ २० ॥ सुअनाणपंचमीए, सूयपूया सा हि बोहिलाभाय । कम्मक्खय अट्टमीओ-ववाओ चउदसीइ पुणो॥२१॥ एवं महानिसीहे भणियं, पव्वेसु तिसु य उववासो । चउमासो पुणो छटुं, तह अट्ठमो पजुसवणंमि ॥२२॥ तो पुच्छड़ वासुदेवो, भयवं! कल्ले समागयाईतिहि । मग्गसिरसुद्धगारसी, तम्मिय करणे फलं किंपि?॥२३॥ तो जिणवरेण भणियं, निसुणसु भावेण सुद्धएगमणो। मग्गसिरेगारसंमि य, कल्लाणग
opoPALPAPADADAPOORDPANDAVADI
IMPALPAPALPAPADOLPADODAVDOpapa
१.आरामत.

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 268