Book Title: Jain Katha Sangraha Part 03
Author(s): Kalyanbodhivijay, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 12
________________ श्रीजैन कथासंग्रहः सुव्रतऋषि कथानकम्। ॥शा DODO DO DO DO DO DO DO DO DO DO DOD DA DO DO DO DO DO DO DO DADO DO DQD पर्वस्वरूपवर्णनंपभणइ नेमिजिणंदो, पव्वाणिय पंच एगपरक्खंमि। बीया दुविहे धम्मे सड्ढं'-जइणं जओ भणियं ॥५॥ पंचमी नाण तवंमि य, आराहियव्वा' य भत्तिभरेणं । पंचवरिसाणि मासा, पंचेव य धम्मकम्मंमि ॥ ६॥ पुत्थीकरयं दीवयवट्टि, पंचेवसप्पियमएण'। फलपंचढोयणं तह, विहिपुव्वं भावपूरेण ॥ ७॥ लहुपंचमी पुणो तह, पंचय मासाणि जह य सत्तीए । कायव्वा सोज्झवणा, पंचय पवरेण ठामेण ॥८॥ तह कत्तीयपंचमीया, कायव्वा जावजीववरिसेण । पकवन्नकणाइमयं, फलाई ढोएइ सव्वंपि॥९॥पंचमि तवंमि विहिपुव्वयंमि, आराहइ एगचित्तेण । सो परलोए पावइ, नाणल्लंभोवमं (?) सुत्तं ॥१०॥ तह अट्ठमीय पव्वंमि, जीवस्स भवे य कम्मबंधो य। नियआऊ अतियभाए, अहवा नवमेय भाएण ॥ ११ ॥ अह सत्तावीसइमे, भाए आउस्स बंधणं अत्थि । अहवा अंतमुहुत्ते, आउस्साऽवसेसकालंमि॥१२॥ परभविआउंबंधइ, भाएए एहिं अट्ठमीइ पुणो। तह चउदसि दिवसंमि, परभवआउंन संदेहो॥१३॥ अट्टमिचउहसीसं. सावओ जड हविज विरतिपरो। तवपोसहाइकरणं, १. श्रादयतीनां. २. आराधितव्या. ३. पुस्तीकरणं. ४. घृत-सर्पिमयेन-दीपकवर्तिपञ्चकेन. ५. सोद्यापना. ६. तपःपौषमादिकरणेन सावधं सव्वं वर्जयेत् इति भावः२ DADA DA DA DO DO DO DO DO DO DO DO DOD TODDODODODOOOOOOOOOOOOODOOOD ॥२॥

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