Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 2
________________ ((प्रस्तुत पुस्तक)) विश्व वाङ्मय की रस-गंगा की एक प्रमुख धारा है--कथा । अपनी प्रवाहशीलता, प्रभावशीलता तथा सार्वजनीन सरसता के कारण-कथा सबसे अधिक पढ़ी/सुनी जाती हैं। भारतीय साहित्य की प्रमुख धारा जैन साहित्य की 'कथा' की विविध विधाओं से सुविकसित तथा समृद्ध हैं। प्राचीनतम आगम साहित्य से लेकर भाष्य, टीका, जीवन चरित आदि ग्रन्थों में हजारों हजार कथाएँ उपवन में खिले बहुरंगी सुमनों की तरह महक रही हैं। जिनमें धर्म, नीति, व्यवहार, वैराग्य, कला, मनोरंजन आदि विषयों की बहुत ही सहज अभिव्यंजना हुई हैं। प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंश तथा गुजराती-राजस्थानी आदि भाषाओं में ऐसे सेंकड़ों ग्रन्थ हैं जिनमें छोटी-बड़ी प्रेरणाप्रद हजारों कथाएँ विविध रूपों में अंकित हैं। जिनके कथ्य जीवन में नई दिशा और संस्कृति को नया सम्बल देने में समर्थ है। जैन साहित्य के गंभीर अध्येता और बहुश्रुत विद्वान् उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने जैन कथा साहित्य को आधार मानकर संपूर्ण भारतीय वाङ्मय को स्पर्श करते हुए कथा साहित्य की विकास यात्रा पर बहुत ही अध्ययन पूर्ण प्रामाणिक तथा ज्ञानवर्द्धक सामग्री प्रस्तुत की हैं। Printed at : DIWAKAR PRAKASHAN, A.7, Avagarh House M.G.Road. Agra-282002. Ph.68328Page Navigation
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