Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 12
________________ व कथा के विविध रूप भी उनमें मिलते हैं । आगमों के पश्चात नियुक्ति साहित्य, भाष्य साहित्य, चूणि एवं टीका साहित्य आता है । इसके साथ ही अनेक काव्य, महाकाव्य, तीर्थकर चरित्र, पुराण, नाटक, रास, चोपी आदि की रचनाएं होती रही है। यदि इन सम्पूर्ण कथा ग्रंथों की सूची बनाई जाय तो लगभग कई हजार ग्रन्थों के नाम आ सकते हैं, किन्तु कथा साहित्य का मूल स्रोत उक्त आगमों से लेकर टीका ग्रन्थ तक ही माने जाते हैं । उत्तरवर्ती कथा साहित्य उसी प्राक्तन आधार पर पल्लवित होता रहा है। यद्यपि कथा साहित्य को जैन कथा, वैदिक कथा, बौद्ध कथा जैसा विशेषण देना भी अखरता है, क्योंकि कथा तो मानव मात्र की निधि है, किन्तु कथा सिर्फ इतिवृत्त नहीं होता, उसमें मानवीय सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, धारणा, अनुभव और विश्वास का भी रंग मिला रहता है इसलिए चाहे, अनचाहे तद्-तद् आस्था व दर्शन, चिन्तन व संस्कृति के आधार पर घटनाक्रम में परिवर्तन, उतार-चढ़ाव-घुमाव होते हैं, इसलिए स्वतः ही कथा विभक्त हो जाती है । इस दृष्टि से प्रस्तुत में मैंने जैन कथा साहित्य के विकास का ही एक संक्षिप्त परिचय तथा उसका स्वरूप दर्शन यहाँ प्रस्तुत किया है। यद्यपि जैन कथा साहित्य पर मैंने स्वतंत्र रूप में यह ग्रन्थ तैयार नहीं किया, किन्तु स्वतः ही एक ग्रन्थ की सृष्टि हो गई है । यदि योजनापूर्वक और सम्पूर्ण कथा साहित्य के आलोड़न के साथ मैं प्रस्तुत ग्रन्थ लिखता तो उसका रूप कुछ भिन्न होता, किन्तु अन्य कार्यों में व्यस्त रहते हुए ऐसा संभव हो नहीं सका । अतः समय-समय पर मैंने जिन कथा ग्रन्थों पर प्रस्तावनाएँ लिखी हैं, सम्पादन किया है, उन सभी का क्रमबार संयोजन करके ही इसे ग्रन्थ का स्वरूप प्रदान किया है। __ जैसे सर्व प्रथम पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी ने जैन कथाएँ नाम से १११ भाग में कथाओं का लेखन किया। उनके संपादन का दायित्व हमें दिया। इस कार्य में जैन कथा साहित्य से सम्बन्धित सैकड़ों ग्रन्थों का अवलोकन, अनुशीलन किया, अतः सर्वप्रथम उसी कथामाला के आधार पर जैन कथा साहित्य का एक विहंगम अवलोकन प्रस्तुत किया है । पश्चात आगम अनुयोग प्रवर्तक मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' द्वारा सम्पादित "धर्म-कथानुयोग' जैसे बिशाल ग्रन्थ की प्रस्तावना लिखने का प्रसंग प्राया, उस संदर्भ में आगम साहित्य की समस्त कथाओं का परिशीलन करने का अव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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