Book Title: Jain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 17
________________ विहंगावलोकन विश्व के सर्वोत्कृष्ट काव्य की जननी कहानी है । कथा के प्रति मानव का आरम्भ से ही सहज आकर्षण रहा है । फलतः जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें कहानी की मधुरिमा अभिव्यजित न हुई हो। सत्य तो यह है कि मानव अपने जन्म के साथ कथा को लाया है और वह अपनी जिन्दगी को कहानी कहते हुए समाप्त करता आया है। कहने और सुनने की उत्कण्ठा सार्वभौम है । कथा के आकर्षण को सबल बनाने के लिए प्राकृतिक सुषमा कहानी साहित्य में एक विशिष्ट उपकरण के रूप में स्वीकृत है। हमारे प्राचीनतम साहित्य में कथा के तत्व जीवित हैं । ऋग्वेद में जो संसार का उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रंथ है, स्तुतियों के रूप में कहानी के मूल तत्व पाये जाते हैं। अप्पला-आमेयी के आदर्श नारी चरित्र ऋग्वेद में आए हैं। ब्राह्मण ग्रंथों में ही हमें अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। शतपथ ब्राह्मण की पुरुरवा और उर्वशी की कथा किसको ज्ञात नहीं है ? ये कहानियाँ उपनिषत्काल से पूर्व की हैं। उपनिषद् के समय में इनका अभिनवतम रूप देखने को मिलता है। गार्गी या ज्ञवल्क्य संवाद तथा सत्यकाम-जावाल आदि कथाएँ उपनिषद्काल की विख्यात कथाएँ हैं। छान्दोग्य उपनिषद् में जनश्र ति के पुत्र राजा जानश्र ति की कथा का चित्रण मिलता है । पुराणों में कहानी के खुले रूप के अभिदर्शन होते हैं । पुराण वेदाध्ययन की कुञ्जी हैं । वेदों की मूलभूत कहानियाँ पुराणों की कथाओं में पल्लवित-प्रस्फुटित हुई हैं। पुराण कथाओं का आगार है। रामायण और महाभारत में भी बहुत से आख्यान संश्लिष्ट हैं। रामायण की अपेक्षा महाभारत में यह वृत्ति अधिक है । एक प्रकार से देखा जाय तो महाभारत कहानियों का कोष है। इस प्रकार कथा साहित्य की एक १. ऋग्वेद के मंत्र १ सूक्त २४।२५, मंत्र ३० । २. छान्दोग्य उपनिषद् ४।१।३। ३. हरियाना प्रदेश का लोक साहित्य, डा० शंकरलाल यादव, पृष्ठ ३३६ तथा ३४० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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