Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ नमः श्रीवीतरागाय ॥ अथ श्रीपृथ्वीचं अने गुणसागरनुंबालावबोधरूप चरित्र प्रारंन
तत्र प्रथम
_ग्रंथकार, मंगलाचरण. प्रणम्य श्रीमहावीरं, शंकरं परमेश्वरम् ॥ पृथ्वीचन्चरित्र स्य, कुर्वे बालावबोधकम् ॥१॥धर्मविद्याविदा येन, गुणैरा कृष्य मार्गणान् ॥ सलयं निर्मितं चित्तं, स श्रीवीरः श्रिये ऽस्तु वः ॥३॥ सर्वातिशयसंयुक्ताः, प्रातिदार्याष्टकान्विताः॥ येऽतीताः सन्ति एप्यन्तस्ते जिना ददतां मुदम् ॥ ३ ॥ सिक्षाः प्रसिक्षा आचार्यो-पाध्यायाः सर्वसाधवः॥प्रपञ्चयन्तु वः श्रेयः, पञ्चैते परमेष्ठिनः॥४॥ स्वनावान्निर्मला नित्यं, दर्शनान्मार्ग दर्शिनः॥ सन्तोऽर्कवत् सदा वन्या, दोषापगमकृत्कराः ॥५॥ संपद्यते हृदालोको, यजयेन पदे पदे ॥न निन्द्या ध्वान्तव दोषात्मका अपिच उर्जनाः॥ ६ ॥नुत्वा पूर्वकवीन नत्वा, स्व गुरून् सझुणे गुरून् ॥ वदयामि जीवजीवातुं, किंचिधर्मकथा मदम् ॥ ७॥ स्वस्तिकृत् सिधिमार्गाणां, स्वर्णाङ्गः पूर्णकुंनव त् ॥ नानेयो नाति वैर्य-पिधानं कुंतलबलात् ॥७॥
अर्थः-कल्याणकारक एवा श्री महावीरपरमेश्वरने प्रणाम करीने पृथ्वी चंना चरित्रनो बालावबोध हुँ करुं बु. ॥ १ ॥
धर्मरूप विद्याना जाण एवा जे पोताना ज्ञानादिक गुणवडे बाणो खें चीने पोतानुं चित्त सलक्ष्य एटले लक्ष्युक्त (जेनीउपर लक्ष्य ) एवं कह्यु एटले षड्ऐश्वर्यसमान कयं. ते श्री वीर परमात्मा तमारा कल्याणने अर्थे था. अर्थात् जेम को बाणवेधी पुरुष,पणो बाण आरोपीने बीजा नपर एकतान राखे तेम जाणवू. ॥ २ ॥

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