Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ जैनकथा रत्नकोष नाग सातमो. सर्व अतिशयें करी युक्त, आठ प्रातिहार्ये करी सहित, एवा जे अती तकालें थयेला, अने वर्तमानकाले जे विद्यमान , तथा अनागत काले जे थशे, एहवा जे श्री तीर्थकर देव ते तमोने मुद् एटले आनंद बापो,तथा निर्विघ्नपणुं बापो ॥३॥ अरिहंत, सिम, याचार्य, उपाध्याय अने सर्व साधु एवा जे प्रसिद्ध पंचपरमेष्ठी ते तमारा कल्यागनी वृद्धी करो, एटले सर्व जीवने महोदय सुखने माटे था. ॥ ४ ॥ स्वनावथी निर्मल, दर्शनथी निरंतर मार्गना देखाडनार, एहवा संत स ऊन साधु ते निरंतर सूर्यनीपे- वंदनीक . केम के, तेमना कर एटले हाथ ते दोषोनो अपगम करनारा , दोषोना समूहना टालनारा ले. अहिंया कर अने दोषा पगमकत् ए वे पदना वे वे अर्थ ले. कर एटले हाथ ए अर्थ सा धुना पदमा लेवो, दोपापगमकत् एटने दोपने दूर करनार ए अर्थ साधुना पदमा लेवो, कर एटले किरण अने दोषापगमकत एटले रात्रीने दूर कर नार ए अर्थ सूर्यना पक्षमा लेवो. जेम अन्य दर्शनीने सूर्य वंदनीक डे, ते दोषा एटले रात्रीना अंधकारने टालनार , तेम संतरूप सूर्य ते अज्ञान रूप अंधकारने टालनार ले ते माटे संतने नित्य वंदना करुं बुं ॥ ५ ॥ हवे सऊन जे जे ते उर्जनना पण गुण ग्रहण करे वे ते कहे . जेम ना वचनना नयथा हृदयमां पगे पगे आलोक थाय ने. उनना वचननां जयथकी सऊनना हृदयने विपे अजुवा थाय जे. एहवा उर्जन लोको जो पण अंधारानी पेठे दोषात्मक ले, तोपण ते निंदा करवा लायक नथी. अहिंया आलोक ए शब्दना वे अर्थ छे. उर्जनना पदमां आलोक एटने विचार, अने अंधकारना पदमां आलोक एटले प्रकाश जाणवो ॥ ६ ॥ एवीरीतें पूर्वे थयेला कविउनी स्तुति करीने रूडा गुणेंकरीने गरिष्ट एह वा जे पोताना गुरु तेने प्रणाम करीने जीवोने औषधनी पेठे जीवनरूप, संसाररूप मरणथी जीवाडनार एहवी सम्यक्दर्शनरूप श्री पृथ्वीचंजीनां चरित्रनी जे धर्मकथा ते अल्पमात्र कहेवानो हुँ आरंन करूं बुं. ॥ ७ ॥ मुक्ति मार्गने विषे मांगलिकना करनार, कंचन सर जेमनुं शरीर में, एवा नानिराजाना पुत्र श्रीषन प्रनु ते श्यामकेशना मिषथी कुंजनी पेठे वैमूर्यरत्ननां ढांकणा जेवा शोने ,एटले श्रीकृषनदेवजीनु शरीर कंचनवर्ण

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