Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ ง प्रस्तावना. यत्न को परंतु क्यांदिथी प्रत मली शकी नहीं माटे एकज प्रत उपरथी महारी यथाशक्ति शोधन करीने ए ग्रंथ बाप्यो बे तथा वली ए ग्रंथमां साक्षी दाखल अनेक स्थले जूदा जूदा शास्त्रोनी गाथा ने श्लोको मा गधी जापा तथा संस्कृत भाषामां खावेला बे, तेने शुद्ध करवा माटे कोइ पण साहामी प्रत नही मलवाथी तेमां अशुद्धताना दोष साधारण वाच नार साहेबाने पण दीगमां श्रावशे तो चतुरजनोने दीगमां यावे तेमां तो कहेवुंज गुं ? माटे महान्पुरुषो महारामां ग्रंथ शोधन करवानी हानश क्ति जाणता बतां पण महारी उपर अप्रियता न प्राणतां पोतें सुधारी वाचशे अने हुं महाराथी थयेली नूलोने माटे समस्त वांचनारा साहेबोनी समद्द महारा शुद्ध अंतःकरणथी मिठाडुक्कड देनं बुं. दर्शन सित्तरी ग्रंथने कथा सहित बराबर धारणामां राखवाथी समके तना सडसठ बोल मांहेला कया कया बोल कया कया सम्यकदृष्टि जनो मां पामीयें ? एवं अनुमान करवानी शक्ति यादिक बीजा पण मोक्षमार्ग ना साधनने प्राप्त करावनारा एवा अनेक उत्तम गुणोनो लान थवाथी र रहेवाने लीधे यशकीर्त्तिनी वृद्धि होवाथी या नवमां पण सर्व सजनो मां सरनी पदवीने पामशे. ए ग्रंथमां केटली कथा बे ने ते कया कया उत्तम जनोनी बे ? इत्यादि बाबतो जो सामान्यथी जाणवी होय तो ते पासेना पानामां अनुक्रमणिका जोवाथी जाणवामां श्रावशे. दू मोहविवेकनो रास घणुकरी मारवाडदेशमां रचेलो होवाथी तेमां श्रा वेली भाषा पण घणी खरी मारवाडदेशनेज मलती होवाथी ते जाषामां हुं विशेपे करी जाण होवाने लीघे तेम वली ए ग्रंथनी मात्र एकज प्रत महारा हस्तगत होवाथी वधारे शुद्धता करवानुं माहाराथी बनी शक्युं नथी. या ग्रंथो केवा रसिक ले, ते विपेनी तारीफ मारा मोढाथी नहिं करवा रकतां हुं एम धारुं बुं के सुइ वांचनारा पोतेज ते ग्रंथो वांचवाथी तेनी तारीफ करा वगर रहेशे नहि. किंबदुविलेखनेन शुनमस्तु .

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