Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
View full book text ________________
वय उगणीस जिन। धुर वय पंच सुचौन ॥६॥ पूर्वत बरण चंद सुविधि निन ! पदम बासु पूज्य लाल ॥ मुनि सुब्रत रिठनेम प्रभु। कृष्ण बरण सुविशाल ॥ १० ॥ मल्लिनाथ फुन पार्श्व प्रभु। नौल बरण वर अंग ॥ षोडस शेष जिनेश तनु । सोवन बरण सुचंग ॥ ११ ॥ श्रेयांस मल्लि मुनिसुव्रत जिने । नेम पावं जगदीश ॥ 'प्रथम पहर दौक्षाग्रही पिछले पोहर उन्नोस ॥ १२ ॥ सुमति जीम दीक्षाग्रही । अठम भक्त मल्लि पास ॥ छठ भक्त जिन बीस वर । वासुपूज्य उपवास ॥ १३॥ ऋषभ अष्टापद शिवगमन । बौर पावापुरी दीस ॥ मेम गिरना र बासु चंपा। शिखर समेत सुवीस ॥ १४ ॥ ऋषभ संधारे शिव गमन । चउदश भत उदार ॥ चरम छठ पगासण पवर, बावीस मास संथार ॥ १५ ॥ ऋषभ बौर पर नेम जिन । पल्यंक आसण शिव पेख ॥ शेष धकोश जिनेश्वर काउसग मुद्रा देख ॥ १६ ॥ जिन चोवीस तणा सुगुण। रचियै वचन रसाल ॥ ध्यान सुधा वर सार रस जय जग करण विशाल ॥ १७ ॥
प्रथम ऋषभजिनस्तवन ।
(एस गुरु किम पाचिये एदेशी) बन्दु वैकर जोड़ने । जुग आदि जिनन्दा । कर्म रिपु गज उपर। मृगराज मुनिन्दा ॥ प्रणामू प्रथम
Loading... Page Navigation 1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 243