Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 9
________________ सज्जन परिमल वर्तमान में Structure पूरा बदल चुका है संघ, समाज और देश का Life Style पर चढ़ चुका है नया विदेशी उन्मेष का प्राच्य संस्कारों को धूमिल कर रहा धुँआ Modern परिवेश का || अब जरूरी हो गया है कि भावी पीढ़ी को मिले सही संस्कार प्रगति शिखर पर भी न आए मानवता में विकार रहे स्वयं पर स्वयं का अधिकार इसीलिए शास्त्रों में प्रणीत है षोडश संस्कारों का विधान जिससे जीवन में प्रकटते नव निधान जन्म ही नहीं मृत्यु का भी होता सुंदर आह्वान अखिल जगत को उन्हीं षोडश संस्कारों से पुनः परिचित एवं अनुप्राणित करने के लिए एक पथ प्रदीप.....

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