Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 8
________________ अमृतार्पण । जिनकी वाणी पथ थूलों को नव प्रकाश दिखाती है। जिनकी दृष्टि मेघ धनकर समकित रस बरसाती है। जिनकी कछणा पारस बनकर __ अपराधी को भगवान बनाती है। जिनकी गुण गरिमा वीट शासन को शिखा स्थान पर बिठाती है ।। उन सधी आल्म साधकों की उच्च साधना को सादर समर्पित ।

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