Book Title: Jain Digest 2011 04
Author(s): Federation of JAINA
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 65
________________ JAIN DIGEST .. May 2011 People today forget that Bhagwan Mahavir lived in the jungle for 12.5 years and went through severe penance to become Arihant. Currently many Jains are preoccupied only with rituals. It is like a turtle living in a lake. We should aim to be a turtle living in the ocean. Bhagwan Mahavir does not belong to Jains only. We need to cultivate awareness, look at the present, learn from the past and revise our plan for the future to spread Bhagwan Mahavir's message of Ahimsa, Anekantvad, Aparigrah and equanimity to the world. "We have a very short stroke of time to do things fast and with perfection."--Namra Muni आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी जिनके विमल प्रताप से, हुआ हिताहित ज्ञान ।। 'भक्तियुक्त गुरूदेव का, धरूँ हृदय में ध्यान ।।। मेरे आराध्यदेव मेरी असीम श्रद्धा के केन्द्र पूज्य गुरूदेव करते थे और जब कभी बात करते थे तो केवल धर्मध्यान। आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमल जी म.सा. का जब भी स्मरण करती आत्मोत्थान एवं कर्मों से मुक्ति सम्बन्धित ही बात करते थे। वे है, मन प्रमोद एवं उत्साह से भर जाता है। मैंने उनके दर्शन अधिकांश समय लेखन अथवा ध्यान आदि साधना में लीन रहते। सर्वप्रथम आज से 38 साल पहले सन 1972 में पाली, राजस्थान थे। गुरूदेव के मौन दिवस के दिन भी उनके सानिध्य में बैठने से में किये थे। उस समय हम सपरिवार उदयपुर, केसिरिया नाथ जी आनन्द का अनुभव होता था। उनके दर्शन मात्र से ही मन में एक गये था लौटते समय रास्ते में गरूदेव के दर्शनार्थ हम पाली अनोखी संतुष्टि सी मिलती थी। जब भी मौका मिलता मरा भावना। रुका शाम का समय था. हमें जयपुर पहंचने की जल्दी थी, उनके दर्शनों के लिए जाने की रहती थी। समय के साथ साथ इसलिए हम उनके सानिध्य में ज्यादा नहीं रूक पाए। उस समय मेरी श्रद्धा बढ़ती गई और साथ साथ धार्मिक भावना भादढ हात मेरी उनसे कोई बातचीत नहीं हुई थी। हमने वापस लौटते समय गई।। उनसे मांगलिक फरमाने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि अभी। उनके प्रवचन भी बहुत प्रभावी रंग प्रेरणास्पद होते थे। जयपुर जा रहे हो क्या? हमने जब हाँ कहा तब उन्होंने अगले। जब भी मैं गुरूदेव के प्रवचन सुनती ऐसा लगता था कि, जैसे दिन जाने को कहा। लेकिन हम लोगों ने उनकी इस बात पर उनके प्रत्येक वाक्य मेरे लिए ही है प्रत्येक शब्द जिनवाणी का गौर नहीं किया तब उन्होंने मांगलिक फरमा दी। उसके पश्चात सार प्रत्येक वाक्य जीवन का उद्धार करने वाला और आत्मा को। हम पाली से जयपुर के लिए रवाना हो गये। हमारे परिवार के। अन्दर तक स्पर्श कर देने वाला होता था। सदस्य दो गाडियों में थे करीब 8-10 कि.मी. ही चले होंगे कि। हमारी एक गाडी बीच जंगल में खराब हो गई। गाड़ी का कोई सन 1990 में मेरे पति के स्वर्गवास के बाद मेरे जीवन। पजा टट गया था, उसके लिए हमें वापस पाली ही जाना पड़ा। में काफी समस्याएं आई पर आपकी कपा से सभी का समाधान। गाडा ठाक हात हात काफा रात बाचचुका था अतः हमने सुबह हो गया। मैंने कभी भी गुरुदेव से अपनी समस्या नहा कहा आर। होने पर ही रवाना होना उचित समझा। गुरूदेव की बात याद कभी कुछ नहीं मांगा। उसके बाद गुरूदेव का देवलोक 1991 में आइउन्होंने कहा था कि सुबह चले जाना, पर हमने उस समय हो गया था। उनके प्रति जो श्रद्धा थी, उसी से हमारी समस्याओं उनकी बात नहीं मानी थी। शायद उन्हें तो इस घटना का पहले का समाधान हो जाता था। ही आभास हो गया था। सुबह रवाना होने से पहले हम गुरुदेव आज में सब जिम्मेदारियों से निवत हो गई है। अब मेरे। के दर्शन करने पहुंचे, और रात बीती सारी बात कही, लेकिन । जीवन का लक्ष्य सिर्फ धार्मिक स्वाध्याय ही है। गुरूदेव का बाया गुरूदेव मौन रहे, और मांगलिक फरमा दी। हुआ बीज मेरे अन्तर में पनपता रहा, और आज वह आध्यात्मिका उसके पश्चात मैंने 1976 में बालोत्तरा, राजस्थान में भावना से लहलहा रहा है. यह सब उनकी ही कृपा से है। आज गरुदेव के दर्शन किये और उसके बाद में लगभग हर वर्ष उनके वे शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं है पर उनका स्मरण हमेशा । दर्शन करने जाती थी। वे हमेशा सामायिक करने की प्रेरणा देते रहता है।। थे। जब भी जाती थी तो यही पूछते थे कि सामायिक बराबर चला 'ऐसे श्रद्धास्पद गुरूदेव को कोटिशः वन्दन नमन।। रही है ना। न तो कभी परिवार सम्बन्धित कोई बात पूछते और ना कभी अन्य किसी सांसारिक बात की चर्चा करते। वे कम ही बात। -रतन करनावट Agamoddharak Shri Ghasilalji Maharaj Jain Acharya and a literary giant, Ghasilalji Maharaj was a great intellectual in the Sthanakvasi Jain community. Shri Ghasilalji was born in 1885 at Banol village, which is known for its great warriors near Jashwantgadh in Mewar region. Shri Ghasilalji's personal appearance was very impressive. Anybody who saw him predicted that the boy would be a great man in the future. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only

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