Book Title: Jain Dharma Darshan evam Sanskruti Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 8
________________ प्रकाशकीय सरस्वती के अनन्य उपासक डॉ० सागरमल जैन का नाम जैनविद्या के क्षेत्र में अनभिज्ञ नहीं है। डॉ० जैन की साहित्य सर्जना में एक प्रवाह है जो विषय के गांभीर्य को सरलता प्रदान करती है। यही कारण है कि जैन विद्या का कोई भी अध्येता उनके ज्ञान गाम्भीर्य और उनकी समालोचनात्मक दृष्टि से परिचित हो जाता है। डॉ० जैन ने अपने शोध-निबन्धों के द्वारा जैनविद्या को एक नया आयाम दिया है। जैन दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में आपने कितने ही अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने का सार्थक प्रयास किया है। आप द्वारा लिखित शोध-निबन्धों के संग्रह का सप्तम पुष्प पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें सुखद अनुभूति हो रही है। इस पुस्तक के प्रकाशन में संस्थान के सह-निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं प्रकाशन अधिकारी डॉ. विजय कुमार का अपेक्षित एवं अपूर्व सहयोग मिला है, एतदर्थ हम इन अधिकरीद्वय के अत्यन्त आभारी हैं। आशा है यह पुस्तक जैनविद्या के अध्येताओं एवंशोधार्थियों के लिए उपादेय सिद्ध होगी। अन्त में अक्षर-सज्जा हेतु 'एड विज़न' एवं विमल चन्द्र मिश्रा,तथा सुन्दर एवं सत्वर मुद्रण के लिए 'वर्द्धमान मुद्रणालय', वाराणसी के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इन्द्रभूति बरड़ संयुक्त सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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