Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 05
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 21
________________ વિશ્વાસ ફેલ દાયક ૧૧૫ - विश्वासो फल दायक. ले. मुनि भद्रानंदविजयजी हुक्म मिलने से बिवारा शीघ्रता से जंगल में गया तो क्या देखता है कि एक गाडी लकड़ीयों से लबालब भरी पडी है फिर क्या, देखते२ अपने काम पुरता बोझा बना लिया, इतने ही में एक आदमीने आकर उसे खूब उराया धमकाया और कहने लगा कि ऐ गधे, क्या तू इतना भी नही समझता जो तू श्मशान में मुर्दे को जलाने के लिये लाई हुई लकडियों तू ले रहा है, क्या तुझे ईश्वरने अक्ल नही दी? इस प्रकार अनेकानेक दुःशब्दों द्वारा उसे खूब हुतकारा, किन्तु उसे औंधे घडे पर पानी की तरह आपको कुछ भी शात नहीं हुआ निस्तब्ध ही खडे रहे, यह देख वहाँ पर ओर भी आदमी इकट्ठे हो गये और लगे धमकाने, चकित हुवे मूर्खराजने कहा हम साधू है हमे मुर्खराज को धूनी के लिये लकडीयों की जरुरत है एतदर्थ मैंने इस भरी गाडी देखकर २-४ लडकियां निकाल लो इसमें आपका क्या गया, इन शब्दोंने तो अग्नि में घी का काम किया, सब उपस्थितों को क्रोध सा आ गया ओर वे गालियों बकने लगे, अरे मूर्ख तुझे ईतना भी ज्ञान नही कि यह काष्ट मुर्देको जलाने के लिये है, मुर्दा इस नवीन शब्द को सुन मूर्खराज मनमें कहने लगे कि मुर्दा क्या है, और उसे जलाया जाता है यह भी तो एक भारी आश्चर्य है, फिर आप उपस्थितों से मुर्दका अर्थ पूछने लगे, भाई मुर्दा किसे कहते है, और वह कैसा जीव होता है, लोकोंने इस विचित्र प्रश्न को सुनकर खूब मश्करी की, किन्तु आपको क्या, इतने ही में एक बूढे आदमीने कहा, हे साधू मरे हुवे आदमी को मुर्दा कहते हैं उसमे जीव नही रहता है। अबतो मूर्खराज के हृदय में लालसा उत्पन्न हुई कि मनुष्य मरकर मुर्दा किस प्रकार बनता है यह अवश्य देखना चाहिए फिर आपने हाथ जोडकर उसी वृद्ध महानुभावसे प्रार्थना कि कि मुझे कृपा कर मुर्दा दिखाइये, देखे मुर्दा कैसा होता है, लोकोंने पागल समझ उसे जानने के लिये कहना सरु किया, किंतु आप तो वहां से टस से मस भी नहीं हुवे फिर उपस्थित वृद्धोंने उसको लालचा भरी करुण मूर्ति को देख बिचार किया कि यदि इसे दिखा दिया जाय तो क्या हर्ज है, इसकी भी बिचारे की शांति हो जायगी, इस प्रकार सोच एक वृद्धने उससे कहा कि चल आ तुझे मुर्दा दिखाते हैं, आप हर्ष से उस वृद्ध के साथ हो लिये, जहां मुर्दा पडाथा वहां पर वृद्ध इन्हे लेगया, वहाँ का दृश्य बडा ही विचित्र था मुर्दै क्रों स्त्री पुरुषोंने चारों ओर से घेर रखाथा एवं छातियां पीटते हुए खूब रुदन कर रहे थे, आपतो एक टक मुर्द को देखने लगे और कहने लगे कि यह तो सोया है, सोया है कहो तो अभी उठाएं इसे तो थकावट के मारे गहरीसी नींद आई है, मूर्खराजके इस प्रलापने वहां पर उपस्थित दुखियों को भी एक बार हंसा दिया, क्या मरा मुर्दा भी कहीं उठ सकता है किन्तु बीच ही में

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