Book Title: Jain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 03 04
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org ४] श्रीमत सहा भी मुनिरा ज्ञानके, 'अनुभव के उपयोगी नाम उपयोगी मां प्रवृत्त रह्या है। है । अतएव जोगी ध्यांन जिहाज', ध्यान नाम ध्यान रे विषेश जोगीनाम मनोयोगादि परखा है। अतएव जिहान जिन शादिक भरे तिम साधूनो शरीर जिहाज तेमां ध्यान रूप किरवाणो भरीत रह्यो है। तेथी जिनी उमायें दीधी है । " किरया | कसरी जोजनामा पुनरुक्ति दूषण विरोधाभास ए वे दूसण गाथा गाया दी है। ते लिखूं | एज पदनी पहिली गाथामा तीजौ पद तेमां तो 'निजगुण अनुभव के उपयोगी' निजगुण आत्मगुण तेहना उपयोगी विचारवान् मनोयोगादि संघनें, तेहनाही 'ध्यान राजिहाज' तइयें साधु परागमें तो सर्वस्व होय चूको । शुक्ल ध्यान सूधी जाय पुंहच्या । बाकी कांई रह्यो नहीं । आगली गाथा में चरित्र ग्रहण करवो। हिवे गूंथे है । तेतमें पोते विचारी लेज्यो । हिंसा मोक्ष अदत्त निवारी, नहि मैथुनके पास | द्रव्यभाव परिग्रहके त्यागी, लीने तत्व विलास ॥ ज० २ 'हिंसा मोस अदन निवारी' हिंसा-प्राणातिपात, मोसमृखादाद अदतिवारी अदत्तादांन तेो निवारक, नहि मैथुनको पास' ए चोथो महामत मैथुन जे काम सेवा, तेनो पास नाम जालेन थी । हिवे पांचमो महाव्रत 'द्रव्य भाव परिग्रहके त्यागी' द्रव्य परिग्रह, भाव परिषद | द्रव्यादिक आदि शब्दे उपगरणादिक तेहनी ममता । 'मुच्छा परि हो तो इयुत् भाव परिवही पणो चित्तवृत्ति सम्बंधी तदाकार पण जे मुर्छा तेहना त्यागी 'लीने तत्व विलास' तत्व जे आतम तत्व तेहनो विलास नाव रमण, तेद्दनें विलीने नाम प्रती रखा है। निर्भय निरमल चित्त निराकुल, बिलगे ध्यान अभ्यास देहादिक ममता सविवारी विचरे सदा उदास ॥ ज० ३ 7 अतएव गया है। आठ भय जे हुंती निर्मल नाथ गयी है आर्थ रौद्र मलजे हुती अतएव एथीज चित्त निराकुल मननी आकुलता जाती रही है । अतएव 'बिलगे ध्यान अभ्यास ध्यान ते शुक्ल ध्यानमो चोथो पाइयो तेहनो जे अभ्यास, तेहमें जे दि नाम प्रय रह्या है । 'देहादिक ममता सब बारी देहनाम शरीर आदि श मनोवृति तेनी ममता अभिलाष सविवारी सर्व निवारी है। अतएव विपरे सदा उदास सदा नाम सर्वदा उदास भावें संसार थकी निरास भावे विचरे नाम प्रवर्त्त रहा है। संगम साधना २ विषे अतएव सर्व संसार थकी उदास वृत्ति है । 3 ५ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only [ ४५ अन्य उपयोग अन्य उपयोग सुनित्रय विपेटीज शुकल ध्यान है ग्रह आहारवृत्ति पात्रा दिव्, संज्म साधन बाज | देवचन्द्र आजानुनाई, निज संपत्ति महाराज ॥ ज० ४ इतिपदम् " ग्रहे आहारवृत्ति" आहार वृत्ति नाम आहार संबंधिनी नाम आजीवका तिण प्र ग्रहे नाम

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