Book Title: Jain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 03 04
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન ધર્મ પ્રકાશ [पाप-महा Dom विवेचन भी तैयार कर लिया है उसे वे शीत्र प्रकाशित करनेवाले हैं। अष्ट प्रवचन माता, पंचभावना और प्रभंजना सझायकी मैंने हिन्दी अनुवाद करवाया है। गद्य अन्थों में आगममारके दो हिन्दी अनुवाद चिदानंदजी द्वितीय और आनंदसागर सूरि रचित प्रकाशित हो चुके हैं और नयचक्र-सार भी. फलोदीसे हिन्दीमें प्रकाशित हुआ है। मस्तयोगी ज्ञानसारजी रचित अध्यात्मगीता और साधु सज्जायके बालावबोधकी उल्लेख उपर किया जा चुका है। अभी मुनि मोहनलाल जी ज्ञान भंडार सुरतसे एक ३५ पत्रों की एक प्रति मंगवाके देखी तो उसमें साधु सजाय बालावबोधके साथ देवचन्दजी के एक महत्वपूर्ण पदका बालानचोध प्राप्त हुआ जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है। श्रीमद् देवचन्दजी कृत "जगतमें सदा सुखी मुनिराज' सिज्झायरो बालावबोध (श्री ज्ञानसारजीकृत) पद-राग प्रभाती जगतमें सदा सुखी मुनिराज । पर विभाव परणतके त्यागी जागे आत्मसमाज । निजगुण अनुभवके उपयोगी जोगी ध्यान जिहाज (ज. १) - अर्थ- जगतमें सदा सुखी मुनिराज' नाम जगत्रनें विर्षे नाम संसारने विर्षे सदा निरन्तर सुखी मुनिराज छे । 'कस्माद्धे तोः परं सुख मित्युक्तत्वात्', नाम संतोष हूंती परं नाम उत्कृष्टो सुख नहीं। इसे कहिशा परण सुं इशा हेतु सू सदासुखी मुनिराज छे । अतएव एंकारशाथीज 'पर विभाव परीणतके त्यागी' पर जड़ादितद्रूप.विभाव' स्व स्वभाव सुं विभन्न परोग नाम जड़ादिकमें परणामन जड़ादिक ऊपर सराग वृत्ति नाम जड़ादिकनो ममत्व । अतएव 'जागें आतम समाज' जाग्या है, प्रवृा है। आत्माना समाजमा आत्मानो समाज ते ज्ञानादि तेहनो चितवन समाजमां दिन रात्री प्रवर्ती रह्या है । अतएव 'निजगुण अनुभवके उपयोगी' निजगुण जे तेहिज जे ज्ञानादि गुण, ते ज्ञानादि गुणोंनो अनुभव ज्यां तत्काल स्वभाव चितवन तद्रूप अनुभव स्वरुप ज्ञान के नाम आत्मीक स्वरुप जिस प्रतिमें यह बालावबोध मिला है उसमें इससे पहले देवचन्द्रजी कृत साधु सज्झाय बालावबोध लिखा हुआ है जो कि श्रीमद् देवचन्द्र भाग दोमें छप चुका है। उपरोक्त मालावबोधके प्रारम्भमें साधु सज्झायका संबंध जोड़ते हुवे लिखा है-“सिज्झाय कर्तायें अन्तिम पदमें नमिये ते मुनिराजने नमस्कार कींधो ते मुनिराजनो 'राग प्रभाती' पदें तेजकर्ता रो करेल तिणरो अर्थ लिखू । For Private And Personal Use Only

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