Book Title: Jain Dharm Prakash 1960 Pustak 076 Ank 09
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०१) શ્રી જૈન ધર્મ પ્રકાશ [ As निर्देश नहीं किया है। केवल जैन विद्वान के हैं। टीका में अनंगरंग नामक कामशास्त्रीय लिखी हुई प्रति होने से ही उसे जैन नहीं ग्रंथ का उल्लेख कई जगह हुआ है और मानना चाहिये। हां, यदि उसके मंगलाचरण कहीं कहीं उसके श्लोक भी उध्धृत किये गये में जैन तीर्थंकर आदि को नमस्कार किया हैं। रतिरहस्य के परिच्छेद ६-७-८ की गया हो या ऐसा कुछ उल्लेख हो जो जैन के समाप्ति पर जो प्रशस्ति लिखी हुई है उसे द्वारा ही किया जा सकता. हो, तो कृति को नीचे दिया जा रहा है। देखकर वैसे उल्लेख को प्रकाश में लाना चाहिये। १. "इति श्रीमद् भट्टारक ललितप्रभुसूरि पट्ट . अभी तक कामशास्त्र संबंधी जैन रचनाओं सुमेरुनंदन वनायमान सज्ञान, सत्संघ दुम में संबत् १६५३में नर्वदाचार्य रचित 'कोकशास्त्र श्रेणिशोभित भूप्रदेश नत नरेश श्रीमद् चौपाई' ही निर्विवाद रूपसे जैन रचना है। विनयप्रभुसूरि पट्टरक्षक वादिन्दद्विरद सिंघायपर मुझे अभी एक और कामशास्त्रीय जैनेतर मान सद्दान ज्ञान वियतीन्द्रिय यतीन्द्र प्रन्थ पर जैनाचार्य की बनाई हुई टीका विरचितायाम रतिरहस्य टीका सुखबोधिकायाम की प्रति प्राप्त हुई है जो मुनि जिनविजय पृष्टमें परिच्छेदः समाप्तमगमत् ॥ ६॥ के संग्रह में थो और अब भारतीय विद्याभवन, २. इति श्रीमद भट्टारक ललितप्रभुमरीश्वरबम्बई में उनके नाम से जो हस्तलिखित । पट्टपाथोधि विधि सिद्धि रिधि स्थिति श्रीमद् प्रतियों का संग्रह है, उसके नम्बर ७०७ में भट्रारक वृन्दारक वृन्द वन्ध्या नवद्वथ सत् सुरक्षित है। 'रतिरहस्य' नामक कामशास्त्र . - विनय विनयप्रभुसूरिणा धूरीणा घट्ट पट्ट रत्नद्वीप के प्रसिद्ध ग्रंथ की यह 'सुखबोधिका' गतप्रतीप रमणीय चिंतामणीय मान सम्मान टीका, ललितप्रभसूरि के पट्टधर विनयप्रभुसूरि श्रीमद् भट्टारक महिमाप्रभुसूरि विरचितायां रतिके पट्टधर महिमाप्रभुसूरिने बनाई है। प्राप्त रहस्यटीकायाम् सुखबोधिकाख्यायां नाम सप्तम. प्रति, आदि अन्त दोंनो से रहित है। प्रारम्भ । के पत्र कोई इधरउधर हो गये होंगे और'. परिच्छेदः समाप्तः ॥ ७ ॥ अन्त में भी आठवें परिच्छेद की समाप्ति के ३. इति श्रीमद् भट्टारक ललितप्रभुसूरि गणबाद ८ श्लोकों की व्याख्या तक की प्रति रीति रमणी रमणीय हारायमान सन्मान भट्टारक लिखी हुई है उसके बाद लिखते हुए छोड श्री विनय प्रभुसूरि पट्ट मणीयमान सद्ध्यानैदी गई है। कुल ५८ पत्र है। छोटी पुस्तक कताम युगप्रधान भट्टारक श्रीमहिमाप्रभुसूरिके आकार में लिखी हुई है। प्रति पृष्ट पंक्ति विरचितायां रतिरहस्यटीकायाम सखबोधिकायाम १५-१६ और प्रति पंक्ति अक्षर करीब १५ भार्याधिकारो नामा अष्टमः परिच्छेदः समाप्तः ।।८।। - - સામાયિકમાં વાંચવા માટે ઉપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી મહારાજને સર્વશ્રેષ્ઠ ગ્રંથ જ્ઞાનસાર-ગુજરાતી અનુવાદ સાથે અવશ્ય વાંચે ... भूस्य ३पिया २-०-०६:--श्रीबेन.प्र.स.-भासनगर For Private And Personal Use Only

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