Book Title: Jain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 02
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2103 :-५....!: मुमान माग इन्द्रियों सहित मनको वतन गवता. पांच स्मारक तथा बल इन छ प्रकारक जीवोंकी निरन्तर रक्षा करना सर्वविति धर्म कहाना है. पांच अगुवा, तीन गुणवत, चार शिक्षात ये वार व्रत नथा दान, शील, तप, भावना इन चार प्रकारके धमका पालन करना देशविरति धर्म कहाता है. अपने शास्त्राम इन धमाका महत्त्व बड़ी खूबीसे कहा है इस लिये शुद्ध दव, शुद्ध गुरुकी भक्ति करना और शुद्ध धर्मका पालन करना प्रत्येक जैन भाईका कर्तव्य है. हमें इस वातपर ध्यान देना चाहिये कि अपने द्रव्यका व्यय मुव्यवस्थित रीलिसे करें. भगवान्न द्रव्यच्चयके लिये सात क्षेत्र को है व ये है:जिनचैत्य, जिन प्रतिमा, ज्ञान, साधु, साध्वी, आवक और श्राविका. भगवान महावीरका निवागके बाद उक्त सात क्षेत्रोंकी रक्षा प्रभावशाली जैनाचार्य गृहस्थाद्वारा कराने रहे परन्तु वामान समय में बनी मुव्यवस्था नहीं होने देखकर माननीय गुलावचन्दनी हट्टाने फलोधी पाश्रनाथमें कॉन्फरन्मकी नीव डाली जिसको दृढ करनेके उद्देश्यसे आप लोग यहां इकटे हुए हैं : प्यारे भाइयो : आप जरा विचारपूर्वक देवं नो माटम होगा कि अन्यामावलम्बी अपने धर्म और समाजक अन्धुदयकं लिये कैसा घोर परिश्रम कर रहे है और सफल मनोरथभी होते जा रहे है. हमको चाहिये कि उनके अविन्द्ध पथका अनुसरण करते हुये अपने धर्म और समाजको उन्नत दशापर भानकीजी जानसे कोशिश करें. अपने समाजकी दशापर विचार करके मैने देखा तो यही पाया कि शिक्षा-प्रचारकी अजन्त आवश्यकता है क्यों कि न कहीं ठीक ठीक धार्मिक शिक्षाका प्रबन्ध है न व्यावहारिक शिक्षाका. बडे दुःश्वकी बात है कि अपने समाजमें अनेक श्रीमानों और विद्वानांके रहने हुभी हम लोग अविद्यान्यकारमें ठोकर खा रहे है ! जब तक श्रीमान् और विद्वान् एकदिल होकर शिक्षापचारमं अपनी २ योग्यतानुसार मदद न पहुंचावगे. तबतक धार्मिक और सामाजिक सुधार होना महा मुश्किल है. गांवो और शहरोंके अपने भाइयोंकी दशापर हम निगाह दौडाते हैं तो यही मालम होता है कि वे बहुत विगडी हालतमें हैं ! यों तो शिक्षित व्यक्तियों की सख्याही बहुत अल्प है और जो शिक्षिन है वे अपने भाइयोंकी पाहभी नहीं करने ! पनी दुःग्य For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38