Book Title: Jain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 02
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निय प्रश. मित्र बन्यो ! जिस उना कार्यके लिये हम लोग उद्यत हुये है या होगे उन सबमें एकवाकी बड़ी भारी जान है; जवनक एक दिलसे काम न बरंगे कभीभी सफलता नही होगी. एकतारूपी महामन्त्र के प्रभावसे सैकडो विघ्नयांधाओंको दूर कर हम अपना अभिष्ट प्राप्त कर सकते हैं. अन्य धर्मानुयायी अपने शास्त्रानुसार विवाहादि संस्कार करवाने है किन्तु अपने जैन भाई सोलह संस्कार अपने धर्मानुसार नहीं करवाते. यह प्रथा जैन धर्मग विरुद्र है इस लिये प्रत्येक जैन भाइको चाहिये कि आने धर्मानुसार मालद संस्कार करवाया करें. जैन जानिमें जिनने बैंक खुले हैं उनसे अधिक बैंक खोलनकाभी प्रयन्न हम लोगोंका करना चाहिजे. पृनाकी कॉन्फरन्समें प्रतिवर्ष प्रत्येक मनुष्यको चार आना दलका को प्रस्ताव पास किया गयाथा उनार कहीं २ नो ध्यान दिया गया और कहीं नहीं. गर कोई उन प्रम्नावार ध्यान दे दगा प्रगल करना जारी है. सज्जनों : हमारी यह शुभ कामना है कि अपनी बनाम्बर जैन कॉन्फग्गही अवस्था उत्तरोता उशत होनी रहे ! ___ अब में अपने व्याख्यानको समान काना हुआ ब्रिटिशसिंह साम्राट पञ्चम व्याज और सन्नाजी भाको अन्यबाद दिनानिक शान्तिमय गज्यमें हमें अपने बर्मक प्रचारका मौका मिला है. ।। इति ।। श्रीकर्मप्रकृति ग्रंथ. શ્રી મયગિરિજી કૃત ટીકા સંયુક્ત આ કર્મના સંબંધના અપૂર્વ ગ્રંથ છે. કમચંશ કરતાં ૬ ચી હદનું રન આમાં સમારેલું છે. છપાવવા દર શુદ્ધતાને માટે પંન્યાસજી આણ. દસાગરજી મહારાજને ખાસ પ્રયાસ છે. તેનું પૂર સાતપુજાર કલાક ઉપરાંતનું હોવાથી તેના ફારમે ૩૬-૩૭ થયાં છે. ગ્રંથ છપાઈ રહેવા આવે છે. માત્ર એક બે ફરજ બાકીમાં છે. કેઈ સ્થને લાભ લેવા ઈચ્છા હોય તે એની અંદર ખર્ચ સુમારે રૂ. ૮૦૦) થવા સંભવ છે જ્ઞાનદાનની અભિલાષાવાળાએ દાનુસાર લખી જ ગાવવું. જે વહેલા તે પહેલે. આવી તૈયાર રસવતી મળવી દુર્લભ છે તે ખાસ ધ્યાનમાં રાખવું. For Private And Personal Use Only

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