Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
मेरी दृष्टि में तनाव के ये कारण भौतिक की अपेक्षा मानसिक ही अधिक हैं। यदि मानव को तनावमुक्त बनाना है, तो हमें उन मानसिक कारणों की खोज कर उनका निराकरण करना होगा, जो सम्भवतः आध्यात्मिकदृष्टि के विकास से ही सम्भव है। वस्तुतः, आज तनावों के निराकरण का प्रयत्न तो किया जाता है, किन्तु तनावों के जन्म लेने के मूलभूत कारणों के निराकरण का प्रयत्न प्रायः नहीं होता है। यह वैसा ही है, जैसे वृक्ष के तने को काटकर उसकी जड़ों को सींचते रहें। हम तनावों के निराकरण का प्रयत्न तो करते हैं, किन्तु तनाव के मूलभूत कारणों का निराकरण नहीं कर पाते, क्योंकि हमारे तनावों के निराकरण के प्रयत्न बाह्य एवं भौतिक-स्तर पर ही होते हैं, जबकि उनकी जड़ें हमारे मानस में हैं ।
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तनाव न केवल हमारे व्यक्तित्व के विकास को अवरुद्ध करते हैं, अपितु हमारे स्वास्थ्य पर भी उनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आज चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि मानव - समाज में बीमारियों के कारणों में पचास प्रतिशत से अधिक कारण तो मानसिक ही होते हैं। मन यदि तनावमुक्त हो, तो शरीर स्वस्थ रहता है । पुनः, तनाव के जन्म का एक कारण भय और अविश्वास भी है। आज विश्व में पारस्परिकविश्वास की बहुत कमी है। हम सब भीतर से एक-दूसरे से भयभीत हैं । हम अभय की अपेक्षा तो रखते हैं, किन्तु भीतर से भयभीत बने हुए हैं। इस भय का मूलभूत कारण हमारे भीतर कहीं-न-कहीं दूसरों के प्रति अविश्वास की भावना है। अविश्वास से भय का जन्म होता है । भय के आते ही व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है और अपनी सुरक्षा के साधनों के रूप में अस्त्र-शस्त्रों पर अधिक विश्वास करने लगता है। आज के मनुष्य का विश्वास दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा सुरक्षा के भौतिक साधनों पर अधिक है। यही कारण है कि आज का मनुष्य तनावग्रस्त बनता जा रहा है, अतः तनावग्रस्तता के कारणों की खोज कर हमें कही-न-कहीं उन कारणों के निराकरण का प्रयत्न करना होगा। चूंकि, तनावग्रस्तता के मूलभूत कारण मूलतः आन्तरिक हैं, उनका जन्म मानव के मन में होता है, अतः उनके निराकरण के लिए कहीं-न-कहीं मानव-मन के परिशोधन का प्रयत्न करना होगा। मन के परिशोधन का यह कार्य आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि के विकास से सम्भव है और इस हेतु हमें धर्म-दर्शन की शरण में जाना होगा।
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