Book Title: Jain Darshan me Samatvayog Author(s): Priyvandanashreeji Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP View full book textPage 2
________________ प.पू. गुरुवर्या सुलोचनाश्रीजी म.सा. आपकी वाणी में विनम्रता का वैडूर्य है आपकी प्रज्ञा में अद्भुत प्रतिभा का सौंदर्य है आपके कार्य में कुशलता का शौर्य है आपके कंठ में कोयलसी कुक का कोकिलय है आपके संयमोपवन में बसन्त का माधुर्य है आपके चिन्तन में गुणरत्नों का गांभीर्य है आपकी पैनीदृष्टि में गहरी पारदर्शिता का चातुर्य है आपके जीवन में सरलता...सहजता का धैर्य है हे शान्तमना, हे उदार हृदया, तुम संयम उपवन के हो समता कुञ्जन हे करूणा सिन्धु ! जीवन बिन्दु ! फलोदी नगर की तुम हो नंदन । हे पार्श्वमणि तीर्थ प्रेरिका गुरुवर्या श्री तुम्हारे पावन चरणार्विदों में शत्-शत् वंदन... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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