Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ जीवन-सुगन्ध मानव-जीवन एक सुगन्धित फूल है, जो अपने परिपार्श्व में समाज व देश के वातावरण में सद्गुणों की परिमल बिखेरता हुआ सबको प्रफुल्लता और प्रसन्नता देता रहता है । यह फूल जब हँसता है तो सम्पूर्ण जगत हंसने लगता है। उसकी प्रसन्नता से सबके हृदय प्रफुल्लित हो उठते हैं। श्रा जीवन की इस परिभाषा को सार्थक करने वाले एक सज्जन हैंश्री कंवरलाल जी सुराना । श्री कंवरलाल जी सुराना परिश्रम, पुरुषार्थ, प्रतिभा और सदाशयता के पर्याय हैं। वे बीज से वृक्ष बनने वाले वे पुरुषार्थी हैं, जिनका जीवन सदा ही “योगः कर्मसु कौशलम्" का प्रतीक रहा है । अपने कार्य में दक्षता, प्रामाणिकता और निष्ठा के साथ सतत् आगे बढ़ने वालों के लिए प्रेरणापुंज है-श्री कंवरलाल जी। श्री कुवरलाल जी का जन्म ओसवाल जाति के प्रसिद्ध सुराना गोत्र में हुआ। सुराना परिवार का मूल क्षेत्र नागौर (राजस्थान) माना जाता है, किन्तु धीरे-धीरे यह परिवार अन्य परिवारों की भाँति सम्पूर्ण भारत में फैल गया। लगभग १५०-२०० वर्ष पूर्व आपके पूर्वजों ने ताज नगरी आगरा को अपनी कर्मभूमि बनाया। यहाँ पर धीरे-धीरे इस परिवार ने विकास/विस्तार कर सर्वतोमुखी प्रगति की । आगरा के सुराना परिवार में बच्चूमल जी सुराना एक प्रभावशाली और व्यवसाय कुशल सज्जन पुरुष थे। आपने बड़ी प्रामाणिकता और कर्तव्य परायणता के साथ लक्ष्मी उपार्जित की और अनेक सत्कार्यों में उसका सदुपयोग भी किया। (८ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 194