Book Title: Jain Darshan ke Mul Tattva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ ने दीक्षा ग्रहण करली है। साध्वी श्री चम्पाजी प्रकृति से सरल स्वभाव की हैं। तपस्या में तथा शास्त्र स्वाध्याय में इन्हें विशेष अभिरुचि है। तपस्या तो निरन्तर चालू ही रहती है। नमस्कार मन्त्र का जाप करती रहती हैं। कभी प्रमाद में समय व्यतीत नहीं करती हैं। अपनी वृद्ध अवस्था के कारण साध्वी श्री चम्पाजी महाराज, वर्षों से आगरा में विराजित हैं। अपनी माताजी के धर्म संस्कारों को विमलाजी ने अपने जीवन में साकार किया है। इन्होंने अपने जीवन में, बेला, तेला, पचोला, अठाई, मासखमण तथा वर्षी तप आदि अनेक प्रकार के तप बड़े उत्साह के साथ किये हैं। आज भी यथाप्रसंग तप-जप करती रहती हैं । दया-दान आदि सत्कर्मों में अपना पूरा-पूरा सहयोग तथा समय देती रहती हैं। आपकी दोनों पुत्रवधू-श्रीमती उषा रानी तथा श्रीमती सुनीता रानी अपनी सास के धार्मिक कार्यों में पूरा-पूरा सहयोग देती रहती हैं। आपका परिवार सुखी तथा समृद्ध परिवार है। श्रीमान् कुंवरलालजी सुराना, समाज सेवा और धर्म कार्यों में, केवल अभिरुचि ही नहीं रखते, बल्कि समय-समय पर, अपना पूरा-पूरा सक्रिय सहयोग भी प्रदान करते हैं। आपके दोनों सुयोग्य सुपूत्र-अशोक कुमार जी सुराना और दिलीप कुमार जी सुराना भी अपने पिता के शुभ कार्यों में पूरा सहयोग प्रदान करते हैं। आपकी दो पुत्रियाँ हैं-बड़ी स्नेहलता ग्वालियर में और छोटी सरोज जयपुर में रहती है । इस प्रकार आपका पूरा परिवार, सुखी एवं समृद्ध है। ____ आपने अपने स्वर्गस्थ पिताश्री लाला बच्चूमलजी सुराना और स्वर्गस्था माताश्री कलावतीजी सुराना की पुण्य-संस्कृति एवं संस्मृति में, इस प्रस्तुत पुस्तक "जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्व" का प्रकाशन कराया है। जैन दर्शन तथा जैन धर्म के सम्बन्ध में, पूरी जानकारी संक्षेप में, पाठकों को उपलब्ध हो सकेगी। जैन दर्शन के मूल तत्त्व-षड् द्रव्य और नवतत्त्व हैं। उन्हें समझने के लिए परिशिष्ट में प्रमाण, नय, निक्षेप एवं लक्षण आदि का भी यथास्थान वर्णन कर दिया गया है। आशा है, पाठक इससे लाभ उठायेंगे। जैन भवन, मोती कटरा --विजय मुनि शास्त्री आगरा ३०-६-१९८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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