Book Title: Jain Achar Samhita Author(s): Deshbhushan Aacharya Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdfPage 10
________________ ' २. मैं आज आम, अंगूर, अनार, सेब, अमरूद, नारियल आदि सचित्त फलों तथा किशमिश, बादाम, छुआरा, पिश्ता, अखरोट, चिलगोजा, काजू आदि सूखे फलों में से अमुक फल खाऊंगा, शेष नहीं। ३. आज मैं जल इतनी बार पीऊंगा। दूध, शिकंजवीन, शर्बत, जीरे का पानी, गन्ने का रस आदि पेय पदार्थों में अमुक पदार्थ "पीऊंगा, इनके सिवाय और कोई चीज़ नहीं पीऊंगा। ४. आज मैं घोड़ा, हाथी, ऊंट, बैलगाड़ी, तांगा, रिक्शा, मोटर, ट्राम, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि सवारियों में से अमुक सवारी काम में लूंगा, उसके सिवाय अन्य किसी पर सवारी न करूंगा। ५. मैं आज खाट, तख्त, पलंग, जमीन में से अमुक चीज़ पर सोऊंगा। ६. मैं आज कुर्सी, चौकी, मूढ़ा, सोफा आदि आसनों में से अमुक आसन पर बैलूंगा। ७. मैं आज इतनी बार ठंडे या गरम जल से स्नान करूंगा। ८. मैं आज चन्दन, केसर, मिट्टी आदि में से अमुक वस्तु का इतनी बार शरीर पर लेप करूंगा। ९ मैं आज गुलाब, चमेली, चम्पा, गेंदा, बेला, कमल आदि के फूलों में से अमुक-अमुक फूल का हार या माला पहनूंगा या * सूंघने, गुलदस्ता बनाने आदि में अमुक फूलों को काम में लूंगा। १०. मैं आज पान, सुपारी, इलायची, लोंग, सोंफ आदि में से अमुक-अमुक वस्तु इतनी बार ही खाऊंगा, और नहीं - लूंगा। ११. मैं आज कुर्ता, कमीज, बनियान, धोती, पगड़ी, साफा, टोपी, अङ्गरखा, कोट, पाजामा, पैन्ट, नेकर आदि में से अमुक -कपड़ा पहनूंगा, और नहीं पहनूंगा। १२. मैं आज हार, जंजीर, अंगूठी, चैन, अनंत, करधनी, कड़े आदि आभूषणों में से अमुक-अमुक आभूषण पहनूंगा, उसके सिवाय और नही पहनूंगा। १३. मैं आज ब्रह्मचर्य से रहूंगा, या मैं आज इतनी बार ही कामसेवन (मैथुन) करूंगा।' १४. मैं आज इतनी बार गाना गाऊंगा, या गाना इतनी बार सुनूंगा। १५. मैं आज सितार, तबला, बांसुरी, हारमोनियम, बेला आदि बाजों में से अमुक-अमुक बाजों को बजाऊंगा, या अमुक -बाजे की ध्वनि सुनूंगा। १६. मैं आज नर्तकी, नर्तक, नट, नटी आदि में से अमुक कलाकार की कला देखूगा, अन्य की नहीं। १७. मैं आज नाटक, चलचित्र, खेल, तमाशे, दौड़ आदि में से अमुक-अमुक देखूगा या कोई भी नहीं देखूगा। इन ऊपर लिखी बातों का नियम रात, दिन, घंटे, सप्ताह, पखवाडा, महीना, ऋतु, अयन आदि समय की मर्यादा करके भी किया जाता है। __ऐसे नियम करते रहने से इन्द्रियों को अपने वश में करते रहने का अभ्यास होता जाता है, क्योंकि इन्द्रियां संसार के • सभी इष्ट विषयों की ओर बे-लगाम होकर दौड़ती रहती हैं । जिस सुन्दर वस्तु को अपने सामने पाती हैं उनको ही ग्रहण करने के लिये तैयार हो जाती हैं । यदि पदार्थों का नियम करके उन इन्द्रियों पर लगाम लगा दी जाती है तो नियमित वस्तुओं के सिवाय अन्य वस्तुओं की लालसा उत्पन्न नहीं होने पाती और इन्द्रियां उनकी ओर नहीं दौड़ने पातीं। इस तरह जिस इन्द्रिय-संयम को बहुत कठिन समझा • जाता है उस इन्द्रिय संयम का सरलता से आचरण हो जाता है । इन्द्रिय-संयम होते ही प्राणो-संयम तो हो ही जाता है। उपर्युक्त नियमों के साथ-साथ नीचे लिखी बातों का भी प्रतिदिन नियम करते रहना उपयोगी है- . १. मनोरंजन या समय बिताने के लिये ताश, चोपड़ आदि खेलना, तोता-मैना की कथायें, आल्हा की कथायें, श्रृंगार रस की कथा उपन्यास आदि पढ़ना। २. अश्लील हँसी, मजाक, दिल्लगी करना। ३. किसी की अनुकृति यानी नकल करके मजाक उड़ाना । ४. किसी का अपवाद (बदनामी) करना, बुराई करना, चुगली खाना, गाली देना। अमृत-कण , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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