Book Title: Jain Achar Samhita Author(s): Deshbhushan Aacharya Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdfPage 17
________________ प्राणी जीवित न बचे, साँस घुट कर तुरन्त मर जावें । वायु यदि हजार रुपये तोले बिके तो भी मनुष्य को अवश्य लेनी पड़े। किन्तु वह वायु बिना कुछ लिये समस्त प्राणियों की निष्काम सेवा करती है। जल समस्त मनुष्यों, पशु-पक्षियों, वृक्षों आदि के जीवन का आधार है। बिना जल के न अन्न उत्पन्न हो सकता है, न वृक्ष फल-फूल सकते हैं, न जगत् के अन्य अनेक आवश्यक कार्य हो सकते हैं । सब की प्यास और सन्ताप मिटाने वाला जल भी सब किसी की निष्काम सेवा करता है । किसी से कुछ नहीं लेता और जो भी पीने, नहाने, धोने, सींचने की सेवा लेना चाहे उसे इनकार नहीं करता । वृक्ष स्वयं धूप सहते हैं, किन्तु अपने नीचे बैठने वाले को गर्मियों के दिन में शीतल छाया और सर्दियों में रात्रि समय गर्म छाया देते हैं। अपने मधुर फल, सुगन्धित पुष्प, कोमल पत्ते सभी कुछ दूसरों को दे डालते हैं जिनसे भूखे प्राणी अपनी भूख मिटाते हैं । वृक्ष अपना चर्म (छाल) देकर अनेक उपयोगी उपकार करते हैं । यहाँ तक कि अपना सारा शरीर (लकड़ी) जला कर मनुष्य का भोजन बना देते हैं, सर्दियों में ठंडक दूर कर देते हैं। उनके फल, फूल, पत्ते, छाल, लकड़ी आदि विविध औषधियों के रूप में मनुष्यों - तथा अन्य प्राणियों के अनेक रोगों को अच्छा कर देते हैं । इन सेवाओं के बदले में वृक्ष मनुष्य से लेशमात्र भी बदला नहीं चाहते । इस तरह जीवन भर हरे-भरे रहकर और सूख कर मर जाने पर भी जगत् की निष्काम सेवा करने वाले वृक्ष जगत् का आधार बने हुए हैं । पृथ्वी को कोई रौंदता है, कोई कूटता है, कोई खोदता है, कोई उस पर मल-मूत्र करता है, कोई उसका हृदय विदारण करके उसके अमूल्य खनिज पदार्थ निकाल लेता है, कोई उस पर ऊँचे-ऊँचे भारी मकान बनाता है तो कोई उस पर सड़क बनाता है। कोई उस पर आग जलाता है, परन्तु पृथ्वी किसी को कुछ नहीं कहती। समस्त कष्ट सह कर भी किसी का कुछ अहित नहीं करती । समस्त जीवों को तथा जड़ पदार्थों को अपने ऊपर ठहराये हुए है । इसके बदले में पृथ्वी ने न किसी से कुछ माँगा, और न किसी ने उसकी कुछ दिया । वह सब की निष्काम सेवा करती है । अग्नि भी मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के जीवन का सहारा है । यदि अग्नि न हो तो समस्त प्राणी ठंडक से सिकुड़ कर या अकड़ कर मौत के मुख में चले जाएँ। गर्मी भी जीवन के लिए अति उपयोगी है। शरीर की गर्मी समाप्त होते ही शरीर की जीवनशक्ति विदा हो जाती है । रेल तथा कारखानों के चलाने में, भोजन पकाने में, धातुओं को गलाने में, कूड़ा-कर्कट जलाने में अग्नि ही - काम आती है । वह अग्नि भी बिना कुछ मूल्य लिये सब की सेवा करती है । सूर्य-चन्द्र का प्रकाश धूप चाँदनी भी प्राणियों के जीवन का आधार है। धूप फलों, अनाजों को पकाती है, सीलन को सुखाती है, अनेक रोगों को उत्पन्न होने से रोकती है, जगत् को प्रकाश और गर्मी प्रदान करती है । चान्दनी रात्रि को प्रकाशित करती है, औषधियों में रस की वृद्धि करती है। रात्रि में सूर्य के अभाव की पूर्ति करती है। ये प्रकाश, धूप, चाँदनी की अमूल्य सेवायें भी हमको बिना कुछ दिये लिये बिना मूल्य प्राप्त होती हैं। इस जीवन के लिये अनिवार्य आधारभूत वायु, जल, भोजन, गर्मी और प्रकाश - ये पांचों चीजें मनुष्य को प्रकृति स्वयं बिना मूल्य प्रदान करती है। माता अपने पुत्र की कितनी सेवा करती है । कदाचित् स्वयं भूखी रह जाए तो रह जाए परन्तु अपने पुत्र को अपना दूध पिला कर उसे भूखा नहीं रहने देती। रात को जब उसका पुत्र पेशाब करके बिछौने गीले कर देता है तब वह उसे सूखे बिछौने पर सुला देती है । आप स्वयं गीले पर लेट जाती है । बच्चे को जरा-सा कोई रोग या कष्ट होता है तो वह रात भर जागती रहती है । माता पुत्र कितनी सेवा करती है, इसका अनुमान आप निम्नलिखित पद्य से लगा सकते हैं । एक हिरणी को जाल बिछा कर एक शिकारी ने पकड़ लिया तब वह हिरणी शिकारी से कहती है कि T आदाय मांसमखिलं स्तनवर्णमङ्गात्, मां मुच्च वागुरिक यामि कुरु प्रसादम् । अद्यापि शस्यकवलग्रहणःनभिज्ञा:, मन्मार्गवीक्षणपरा: शिशवो मदीयाः ॥ भावार्थ :- हे शिकारी ! तू मेरे दूध भरे स्तनों को छोड़कर मेरे शरीर का शेष सब मांस ले ले और कृपा करके मुझे जाने दे । मेरे दुधमुंहे मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे, क्योंकि वे अभी तक घास खाना नहीं जानते। मैं उन्हें जाकर दूध पिलाऊँगी । अपनी सन्तान के लिये माता की अनुपम निष्काम सेवा कवि ने उक्त श्लोक में हिरणी के वचन द्वारा रख दी है। इसी • कारण नीतिकार ने कहा है ५२ Jain Education International आचार्यरन श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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