Book Title: Jain Achar Samhita
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 16
________________ राजा ने चोर से सब समाचार पूछे। चोर ने साधु महाराज से सत्य व्रत लेने से लेकर अब तक का सब बात सच-सच कहो राजा चोर की सत्यवादिता पर बहुत प्रसन्न हुआ और पारितोषिक में उसको बहुत-सा धन देकर उससे चोरी करना छुड़ा दिया । इस तरह एक झूठ के छोड़ देने से चोर का इतना राज-सम्मान हुआ और उसका चोरी करना भी छूट गया । डाली । बहुत-से लोग अपने छोटे बच्चों के साथ झूठ बोल कर अपना चित्त बहलाया करते हैं परन्तु बच्चों का हृदय कोमल, स्वच्छ, निर्मल होता है । उस पर जैसे संस्कार माता-पिता जमाना चाहें वैसे जमा सकते हैं। तदनुसार जो बात मनोरंजन के लिये बच्चों से की जाती है बच्चे उसको सत्य समझ कर अपने हृदय में धारण कर लेते हैं। इस कारण मनोरंजन के लिये भी बच्चों से झूठ न बोलना चाहिये। सत्यभाषी मनुष्य यदि धनहीन हो तो भी सब कोई उसका विश्वास करता है और असत्यवादी बहुत बड़ा धनिक हो तब भी कोई उसका विश्वास नहीं करता । संसार का व्यवहार, व्यापार सत्य के आधार पर ही चलता है । सत्यवादी मनुष्य बिना हस्ताक्षर किये तथा बिना साली या लिखा-पढ़ी के लाखों करोड़ों रुपयों का लेन-देन किया करते हैं, जब कि असत्यवादी के साथ बिना पक्की लिखापढ़ी के कोई भी व्यवहार नहीं करता । अतः अपना विश्वास फैलाने के लिए सदा सत्य बोलना चाहिये । परन्तु ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिये जिससे किसी को दुःख पहुंचे । जिस तरह नेत्रांध पुरुष को अन्धा कहना अथवा एकाक्षी को काना कहना असत्य नहीं है परन्तु उन अन्धे व काने पुरुषों को अन्धा काना शब्द बहुत बुरा मालूम होता है । अतः उनको अन्धा काना नहीं कहना चाहिये । इसके अतिरिक्त जिस सत्य बोलने से किसी का प्राण-नाश होता हो अथवा धर्म के विनाश होने की आशंका हो तो वैसा सत्य वचन भी न कहना चाहिये । एक जंगल में एक मुनि बैठे स्वाध्याय कर रहे थे। इतने में एक हिरण भागता हुआ उनके सामने से एक ओर निकल गया । कुछ देर पीछे एक शिकारी धनुषवाण लिये वहाँ आया। उसने मुनिराज से पूछा महाराज ! हिरण किधर गया है ? मुनिराज ने विचार किया यदि मैं सत्य कहता हूं तो इसके हाथ हिरण मारा जायगा और यदि हिरण को बचाता हूं तो मुझे असत्य भाषण करना पड़ता है । इसके लिये उन्होंने उत्तर दिया कि भाई ! मेरी आंखों ने हिरण देखा है परन्तु आंखें कुछ कह नहीं सकतीं, और जीभ कह सकती है किन्तु उसने कुछ देखा नहीं, इसलिए मैं तुझे क्या बताऊं । इस ढंग से उन्होंने हिरण के प्राण बचा दिये । कोई बात सिद्धान्त विरुद्ध भी नहीं कहनी चाहिये । यदि कोई बात मालूम न हो तो कि 'यह बात हमको मालूम नहीं'। उस विषय में अंट-संट उत्तर देना उचित नहीं । सरलता के साथ कह देना चाहिए इस तरह मुख से प्रामाणिक, सत्य, स्व-परहितकारी मीठे वचन बोलने चाहियें। अपने नौकर-चाकरों से, भिखारी, दीनदरिद्र व्यक्तियों से सान्त्वना तथा शान्तिकारक मीठे वचन कहने चाहियें। पीड़ाकारक कठोर बात न कहनी चाहिये, क्योंकि उनका हृदय पहले ही दुःखी होता है। कठोर वचनों से उन्हें और भी अधिक दुःख होगा। यह जीभ यदि अच्छे वचन बोलती है तो यह अमूल्य है । अगर वह झूठे, भ्रमकारक, भय-उत्पादक, पीड़ादायक, कलहकारी, क्षोभकारक, निन्दनीय वचन कहती है तो यह जी चमड़े का अशुद्ध टुकड़ा ही है । निष्काम सेवा यह महान् जगत् अनन्त पदार्थों के सहयोग से बना है । बिखरे हुए धूलिकण भी जब जल का संयोग पा जाते हैं तब मिट्टी का रूप धारण करके बड़े-बड़े भवन बना देते हैं । प्यास बुझाने के लिये सुन्दर घड़ा बन जाते हैं । अन्न उत्पादन के लिये खेत की मिट्टी बन जाते हैं । आकाश से गिरने वाले जल-कण मिल कर नदी, झील, समुद्र का रूप धारण कर लेते हैं । बिखरे हुए अणु मिलकर ऊँचे पर्वतों, विशाल वनों और विस्तृत पृथ्वी का रूप धारण कर लेते हैं जो कि असंख्य जीवों तथा जड़ पदार्थों के ठहरने का आधार बन जाती है । वाली मनुष्यों, पशु-पक्षियों तथा अन्य समस्त कीड़ों-मकोड़ों, यहां तक कि वृक्षों के लिये, प्रतिक्षण श्वास द्वारा जीवन सुरक्षित रखने किसी से भी बिना कुछ मूल्य लेकर सब की सेवा करती है । यदि वायु एक घण्टे भर भी जीवों को न मिले तो कोई भी वायु अमृत-च Jain Education International For Private & Personal Use Only ५१ www.jainelibrary.org

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