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आशीर्वचन
गणधर इन्द्रभूति का महाप्राण व्यक्तित्व श्रमण परम्परा के समग्र गौरव का एक पिंडीभूत रूप है ।
श्रुत महासागर की असीम - अतल गहराई में पैठकर भी सत्य की उत्कट जिज्ञासा, विचारों का अनाग्रह तथा हृदय की विरलविनम्रता, मधुरता, सरलता का विलक्षण संगम, इन्द्रभूति के जीवन अद्वितीय रूप है, न सिर्फ श्रमण संस्कृति में, अपितु सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में भी !
पच्चीस सौ वर्ष पूर्व का यह महान् व्यक्तित्व श्रमण-ब्राह्मण परम्परा के बीच सेतु बनकर आया, और सांस्कृतिक - मिलन, धार्मिकसमन्वय एवं वैचारिक अनाग्रह का मार्ग प्रशस्त करने में सफल हुआ ।
यद्यपि ऐसे असाधारण व कालातीत व्यक्तित्व का आकलन शब्दातीत होता है, फिर भी उसे शब्दानुगम्य बनाने का प्रयत्न युगयुग से होता रहा है । प्रस्तुत में विद्वान लेखक एवं सम्पादक ने इन्द्रभूति के उस महामहिम शब्दातीत रूप को शब्द- गम्य बनाने का स्तुत्य प्रयत्न किया है । पुस्तक का सरसरी तौर पर अवलोकन कर जाने पर मुझे लगा है - गौतम के व्यक्तित्व की गहराई को श्रद्धा एवं चितन के साथ उभारने का यह प्रयत्न वास्तव में ही प्रशंसनीय है तथा एक बहुत बड़े अभाव की संपूर्ति भी !
ऐसे अनुशीलनात्मक विशिष्ट - ग्रन्थों से पाठकों की ज्ञानवृद्धि के साथ तत्वजिज्ञासा भी परितृप्त होगी - ऐसा विश्वास है ।
- उपाध्याय अमर मुनि
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