Book Title: Hum Choradiya Khartar Nahi Hai Author(s): Kesarichand Choradia Publisher: Kesarichand Choradia View full book textPage 7
________________ "xxxxभैंसाशाह की कीर्ति सारे विश्व में फैल गई। बाद में आप यात्रा को पधारे। सारी यात्राएं करने के बाद जीमन किया। याने दो मरतबा जुग किया। जितने जीमण वाले उन सबको जिमाया । और नर-नारियों को अच्छे वस्त्राऽलंकार की पेहरावनी दी । दान पुण्य भी आपने बहुत सा किया । जिन मन्दिर बनवाये और संघ में नाम किया। आपने एक लाख घोड़े और एक लाख गायें दातारी दान में दिये । आपकी बनाई हुई घी तेल की बावड़िये खण्डहर रूप में अब तक माण्डवगढ़ में विद्यमान हैं। कोई देखना चाहे तो जाकर देख सकता है। आप विक्रम सं० २०९ दो सौ नव के समय हुए हैं। जैन समाज के साहित्य में आपका नाम सुवर्णाऽक्षरों से लिखा हुआ है।" जैनपत्र ता० २० नवम्बर २५ २-दूसरा भैंसाशाह विक्रम की छठी शताब्दी में हुआ है। जिसका वि० सं० ५०८ का शिलालेख पुरातत्व संशोधक इतिहासज्ञ मुन्शी देवीप्रसादजी जोधपुर वालों की शोध खोज से कोटा राज्य के अटारू नाम के ग्राम के भग्न मन्दिर में मिला है । जिसको मुन्शीजी ने 'राज पूताना की शोध खोज' नाम की पुस्तक में मुद्रित करवाया है। मुन्शीजी को शोध खोज करने पर यह भी पता मिला है कि इस भैंसाशाह और रोड़ा बिनजारा के आपस में व्यापार सम्बन्ध और गाढ़ी प्रीति भी थी। जिसको स्मृति के लिए भैंसा और रोड़ा दोनों के नाम भैंसरोड़ा नामक ग्राम बसाया था जो मेवाड़ में इस समय भी विद्यमान है। ३-तीसरा भैंसाशाह डीडवाना में हुआ। आपने डीडवाने में एक कुआ खुदवाया था, वह आज भी विद्यमान है। बाद में रोज-खटपट से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16