________________ खैर ! इस विषय का खुलासा तो मैंने " ओसवालोत्पत्ति विषयक शङ्का समाधान" नामक पुस्तक में विस्तृत रूप से पढ़ लिया है / यहाँ तो सिर्फ इतना ही बतलाना है कि यदि नाहरजी की मान्यतानुसार ओसवंश की उत्पत्ति वि० सं० 500 और 1000 के बीचमें हुई हो तोभी उस समय खरतरों का तो जन्म भी नहीं हुआ था। फिर वे किस आधार पर यह कह सकते हैं कि ओसवाल खरतराचार्य ने बनाये ? अर्थात् यह केवल कल्पना मात्र और भोले भोंदू लोगों को बहका कर अपने जाल में फंसाने का ही प्रपंच मात्र है। 5-खरतर गच्छाचार्यों ने एक भी नया जैन बनाया हो ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है / हाँ, उस समय करोड़ों की संख्या में जैन समाज था, जिनमें कई भद्रिक लोगों को भगवान महावीर के पांच कल्याणक के बदले छः कल्याणक तथा स्त्रियों को प्रभु पूजा छुड़ा के लाख सवा लाख मनुष्यों को खरतर बनाया हो तो इसमें दादाजी का कुछ भी महत्त्व नहीं है। कारण यह कार्य तो ढूंढिया तेरहपंथियों ने भी कर बताया है। ____ यदि खरतराचार्यों ने किसी को प्रतिबोध देकर नया जैन बनाया हो तो खरतर लोग विश्वसनीय प्रमाण बतलावें / आज बीसवीं शताब्दी है। केवल चार दीवारों के बीच में बैठ अपने दृष्टि रागियों के सामने मनमानी बातें करने का ज़माना नहीं है। / मैं तो आज और भी डंके की चोट से कहता हूँ कि खरतरों के पास ऐसा कोई भी प्रमाण हो कि किसी खरतराचार्यों ने ओसवाल ज्ञाति तो क्या, पर एक भी नया ओसवाल बनाया हो तो वे बतलाने को कटिबद्ध हो मैदान में भावें / इत्यलम् / श्री. शंभूसिंह भाटी द्वारा आदर्श प्रेस, अजमेर में मुद्रित / Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com