Book Title: Hum Choradiya Khartar Nahi Hai
Author(s): Kesarichand Choradia
Publisher: Kesarichand Choradia

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Page 10
________________ विगत खांप अठारेरी-तातेड़, बाफणा, वेद मुहता, चोरडिया, करणावट, संचेती, समदड़या, गदइया, लुणावत, कुमट, भटेवड़ा, छाजेड़, वरहट, श्रीश्रीमाल, लघुष्ठि, मोरख, पोकरणा, राका डिडू इतरी खांपा वाला सारा भट्टारक सिद्धसूरि ने और इणोंरा चेला हुवे जिणांने गुरु करने मान जो अने गच्छरी लाग हुवे तिका इणां ने दीजो। अबार इणारे ने लुकों रा जतियों रे चोरड़ियों री खाप रो असरचो पड़ियो। जद अदालत में न्याय हुवो ने जोधपुर, नागोर, मेड़ता, पीपाड़ रा चोरड़ियों री खबर मंगाई तरे उणोंने लिखायो के मारे ठेठु गुरु कवलागच्छ रा है । तिणा माफिक दरबार सुं निरधार कर परवाणो कर दियो है सो इण मुजब रहसी श्री हजूर रो हुकम है। सं० १८७८ पोस वद १४ । इस परवाना के पीछे लिखा है-( नकल हजूर के दफतर में लीधी छे) इन पाँच परवानों से यह सिद्ध होता है कि अठारा गोत्र वाले कवला ( उपकेश ) गच्छ के उपासक श्रावक हैं । यद्यपि इस परवाने में १८ गोत्रों के अन्दर से तीन गोत्र, कुलहट, चिंचट, ( देशरड़ा) कनोजिया इसमें नही आये हैं । उनके बदले गदइया, जो चोरड़ियों की शाखा है, लुनावत, और छाजेड़ जो उपकेश गच्छाचार्यों ने बाद में प्रतिबोध दे दोनों जातियाँ बनाई हैं इनके नाम दर्ज कर १८ की संख्या पूरी की है, पर मैं यहाँ केवल हमारी चोरडिया जाति के लिये ही लिख रहा हूँ। शेष जातियों के लिए देखो मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी की लिखी हुई “जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक। उपरोक्त प्रमाणों से डंके की चोट सिद्ध हो जाता है कि हमारी चोरदिया जाति स्वतंत्र गोत्र नहीं पर आदित्य नाग गोत्र की शाखा है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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