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प्रथम खण्डरूप आ प्रकाशनमां हीसुं० ना १ थी ८ सर्गो समाव्या छे. ९ थी १६/१७ सर्गो बीजा भागमा समावाशे. प्रांते आपेलां बे परिशिष्टोमां प्रथममां हीसुं०नी ईडर-भंडारनी प्रतिनी वाचना छे. ए प्रति हीसुं० ना प्रथम सर्गात्मक छे, तेमज तेमां कर्ताए स्वयं तेना पाठांतरो के रूपांतरो नोंधेला छे. ए अक्षरो झेरोक्स नकलमां जेटला उकेली शकाया तेटला अहीं आप्या छे. परंतु, आ प्रतिनो पाठ अहीं प्रथम वखत प्रकाशमां आवे छे, जे अभ्यासीओ माटे खूब उपयोगी थशे तेवी श्रद्धा छे. द्वितीय परिशिष्टमां ८ सर्गोमां पद्योनी अकारादि-सूचि आपी छे.
आ कार्य माटे पोताना भंडारोनी प्रतिओनी झेरोक्स नकलो आपवा बदल १. डहेलानो उपाश्रयअमदावाद, २.शेठ डो. अ. पेढीनो भंडार-भावनगर, ३. श्री जैन आत्मानन्दसभा-भावनगर, ४. ईडर-संघ भंडार-आ बधाना कार्यवाहकोनो ऋणस्वीकार करीए छीए. ईडरनी प्रतिनी नकल माटे पन्याप श्रीमुनिचन्द्रविजयजी गणि (झींझुवाडा)नो पण आभार मानवो जोईए.
आ ग्रंथ, संपादन मुनि रत्नकीर्तिविजयजीए खूब रस अने खंतथी कर्यु छे. संपादन-संशोधन माटेनो तेमनो आ प्रथम ज प्रयास होवा छतां आ कार्यमां तेमणे प्रशस्य गति अने निपुणता दाखवी छे, ते ग्रंथर्नु अवलोकन करनारने अवश्य जणाई आवशे. आम छतां 'गच्छतः स्खलनं क्कापि' ए न्याये, तेमनो आ प्रथम ज अनुभव तथा प्रयास होई क्यांय पण क्षति जणाय तो सुज्ञ जनो ध्यान दोरे तेवी तेमनी प्रार्थना, अहीं मारा द्वारा तेओ प्रगट करे छे....
ग्रंथना प्रूफवाचन तथा अन्यान्य कार्योमा मुनिश्रीविमलकीर्तिविजयजी, मुनि श्री धर्मकीर्तिविजयजी तथा मुनि श्री कल्याणकीर्तिविजयजीनो भरपूर साथ मळ्यो छे, ते पण अहीं नोंधq जोईए.
प्रांते, जगद्गुरुनी ४००मी स्वर्गारोहण-तिथि उजवणीरूपे अने आराधनारुपे आ ग्रंथ- प्रकाशन थई रयुं छे, तेनी पाछळ श्री गुरुभगवंतनी कृपा ज महत्त्वपूर्ण परिबळ छे, अने ते सदाय वरसती ज रहो तेवी प्रार्थना साथे
-विजयशीलचन्द्रसूरि
भावनगर पर्युषणमहापर्व-सं. २०५२
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