Book Title: Hirsundaramahakavyam Part 1
Author(s): Devvimal Gani, Ratnakirtivijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 11
________________ 10 बे विशेषताओ ते आ : (१) आमां कर्ताए टांकेला अनेक ग्रन्थोनां अढळक उदाहरणो-अवतरणो. (२) आमां मळता देश्य तेमज कफ्ना समकालीन व्यवहारोपयोगी भाषाकीय शब्दप्रयोगो. थोडं फुटकळ काम आ दिशामां थयुं छे खलं. पण नक्कर काम हजी सन्निष्ठ-रसिक अभ्यासीनी प्रतीक्षामां ऊभुं ज छे. हीसुं० ना द्वितीय भागमां आवा शब्दो तथा उदाहरणोनी एक नोंध मूकवानी धारणा छे, ए आशाए के कोई अभ्यासी तेनो उपयोग करी शके. प्रस्तुत प्रकाशन/संपादन परत्वे संवत् २०४८मां ऊनाक्षेत्रनी स्पर्शना थई, त्यारे जगद्गुरुनी अंतिम भूमि रूप "शाहबाग" नी पण यात्रानो योग बन्यो. जगद्गुरुना स्पृहणीय जीवन-कार्य प्रत्येनो अहोभाव ते पळे प्रबळपणे अभिव्यक्त थतो अनुभवायो. तेओश्रीनी जीर्ण थएल समाधिनो पुनरुद्धार २०५२ सुधीमा कराववो - एवो एक संकल्प पण सहजभावे मनमां जाग्यो. सं. २०५०मां जगद्गुरुनी जन्मभूमिना क्षेत्र ‘पालनपुर'मां चातुर्मासनो योग बन्यो. अपिरिचित क्षेत्र, पण एकमात्र आकर्षण ए के त्यां हजी जगद्गुरुनुं जन्मस्थान गणातुं मकान उपाश्रयरूपे मोजूद छे. चोमासामां पण आ सिवाय कोई ज बाबत एवी न मळी के जे त्यां अजाण्याने जवा के रहेवानुं आकर्षण बनी शके.पण ए चोमासामां जगद्गुरुना जन्मस्थान 'नाथीबाईना उपाश्रय' ना नित्यदर्शननो सरस लाभ थयो, ए ज महत्व- गणाय. हुं एम विचारुं छु के जेमना जन्मनुं तथा स्वर्गारोहण- - आ बन्ने स्थानो आजे पण मोजूद होय तेवा ऐतिहासिक पुरुष मात्र जगद्गुरु ज छे. पालनपुरना वर्षावासमां 'हीरसौभाग्य' नुं वांचन करवं आरंभ्यु. तो मुद्रित प्रतिमां आव्या करती क्षतिओ बहु खटकवा मांडी. शोधकवृत्तिनी प्रेरणाथी हीसौ०नी हस्तप्रतिओ मेळववा प्रयास कर्यो, तो हीसौ० नी बेत्रण ज प्रतिओ मळी, अने वधुमां हीसुं० तथा हील० नी कुल त्रणेक प्रतिओ सांपडी. ए बधी सामग्री तपासतां हीसुं० तथा हील०नी सामग्री हजी अप्रगट होवानुं जणातां तेनुं संपादन तथा प्रकाशन, चतुर्थ शताब्दीना अवसरने अनुलक्षीने, करवानो निश्चय कर्यो; अने मुनि श्रीरत्नकीर्तिविजयजीने ए काम भळाव्युं. तेमणे पण उल्लासभेर ए काम करवानुं स्वीकार्यु; अने तेमणे करेली दोढ वर्षनी महेनतनुं परिणाम आ ग्रंथरूपे आजे प्रगट थई रह्यं छे. आ संपादनमा प्रथम हीसुं० काव्यनो मूळपाठ, तेनी नीचे तेनी टिप्पणी, अने ते पछी हील० (हीरसौभाग्य परनी लघुवृत्ति)नो पाठ-आ क्रमे वाचना आपवामां आवी छे. हील० प्रतिमां पण मूळ-काव्य पाठ छे ज; परंतु ते हीमु० (हीरसौभाग्य-मुद्रित)ने सर्वांशे मळतो ज पाठ छे, तेथी ते पाठ अत्रे आपेल नथी. ज्यां ज्यां हीसुं० अने हील. प्रति के हीमु० वाचनाना पाठमां फेरफार आवे छे त्यां ते पाठ योग्य सूचनपूर्वक मूळमां के पादनोंधरूपे मूकेल छे. पद्योना क्रममां फेरफार होय, कोई पद्यो, पद्य हीसुं० मां न होय एवे स्थळे ते अंगेनी नोंध के पाठ मूकवामां आवेल छे. आवां स्थानोनी तालिका बीजा खण्डमां आपवानी धारणा छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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