Book Title: Haribal Macchino Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ अथ पंमित लब्धिविजय विरचित श्री हरिबलमचीनो रास प्रारंभः ৯ ॥ दोहा ॥ ॥ प्रथम धराधव जगधणी, प्रथम श्रमण पण एह ॥ प्रथम तीर्थंकर जग जयो, प्रथम गुरू पनणेह ॥ १ ॥ विश्व स्थिति कारक प्रथम, कारक विश्व उद्योत ॥ धा रक अतिशय व्यादि जिन, तारक नवनिधि पोत ॥ २ ॥ लघुवय वा इकुनी, पारण दिन पण तेह ॥ मिष्ट इष्ट जेहने सदा, नानिनंदन प्रणमेह ॥ ३ ॥ सिद्धव धूना संगमें, बक बक्यो दिन रात ॥ हुं तस पदपंक ज नमुं, नित्य नठी परजात ॥ ४ ॥ हंसासन जे स रसती, वरसति वचन विलास ॥ कविजन केरा हृद यमें, करती बुद्धि प्रकाश ॥ ५ ॥ ते हुं प्रणमुं नारती, वारति जड अंधार ॥ मुऊ मन मंदिरमें वसी, करवा मुऊ उपगार ॥ ६ ॥ माता मुऊ महोटो करी, देजे व चन रसाल ॥ रंगरंगीली जनसना, सांजले थइ नज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 294