Book Title: Gyanvad Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 21
________________ ज्ञानवाद : एक परिशीलन २६७ द्रव्य-श्रुत मति (श्रोत्र) ज्ञान का कारण बनता है, परन्तु भाव-श्रुत उसका कारण नहीं बनता । एतदर्थ मति को श्रुतपूर्वक नहीं माना जाता । दूसरे मत से द्रव्य-श्रुत श्रोत्र का कारण नहीं है, विषय बनता है। कारण कहना चाहिये जबकि श्रूयमाण शब्द से श्रोत्र को उसके अर्थ का परिज्ञान हो, पर इस प्रकार होता नहीं है। केवल शब्द का बोध श्रोत्र को होता है, श्रुतनिश्रित मति भी श्रुतज्ञान का कार्य नहीं होता । अमुक लक्षण वाली गाय होती है। यह परोपदेश या श्रुतग्रन्थ से जाना, उसी प्रकार के संस्कार बैठ गये। गाय देखी और जान लिया कि यह गाय है, यह ज्ञान पूर्वसंस्कार से पैदा हुआ ! एतदर्थ इसे श्रुतनिश्रित कहा जाता है ।५६ ज्ञानकाल में यह "शब्द" से उत्पन्न नहीं हुआ। एतदर्थ इसे श्रुत का कार्य नहीं माना जाता। ___ मतिज्ञान विद्यमान वस्तु में प्रवृत्त होता है और श्रुतज्ञान वर्तमान, भूत और भविष्य इन तीनों विषयों में प्रवृत्त होता है। प्रस्तुत विषयकृत भेद के अतिरिक्त दोनों में यह भी अन्तर है कि मतिज्ञान में शब्दोल्लेख नहीं होता और श्रुतज्ञान में होता है। तात्पर्य यह है कि जो ज्ञान इन्द्रियजन्य और मनोजन्य होने पर भी शब्दोल्लेख-युक्त है वह श्रुतज्ञान है और जिसमें शब्दोल्लेख नहीं होता, वह मतिज्ञान है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं इन्द्रिय और मनोजन्य एक दीर्घ ज्ञानव्यापार का प्राथमिक अपरिपक्व अंश मतिज्ञान है और उत्तरवर्ती परिपक्व व स्पष्ट अंश श्रुतज्ञान है। जो ज्ञान भाषा में उतारा जा सके वह श्रुतज्ञान है और जो ज्ञान भाषा में उतारने-युक्त परिपाक को प्राप्त न हो, वह मतिज्ञान है। मतिज्ञान को यदि दूध कहें तो श्रुतज्ञान को खीर कह सकते हैं। ५७ अवधिज्ञान जिस ज्ञान की सीमा होती है उसे अवधि कहते हैं। अवधिज्ञान केवल रूपी पदार्थों को ही जानता है ।५८ मूर्तिमान द्रव्य ही इसके ज्ञेयविषय की मर्यादा है। जो रूप, रस, गंध और स्पर्श युक्त है, वही अवधि का विषय है। अरूपी पदार्थों में अवधि की प्रवृत्ति नहीं होती । षट् द्रव्यों में से केवल पुद्गल द्रव्य ही अवधि का विषय है। क्योंकि शेष पाँचों द्रव्य अरूपी हैं। केवल पुद्गल द्रव्य ही रूपी है। अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से इसकी अनेक मर्यादाएँ बनती हैं। जैसेजो ज्ञान इतने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का ज्ञान कराता है उसे अवधि कहते हैं। अवधिज्ञान का विषय १. द्रव्य की दृष्टि से जघन्य अनन्त मूर्तिमान द्रव्य, उत्कृष्ट समस्त मूर्तिमान द्रव्य । २. क्षेत्र की दृष्टि से जघन्य न्यून-से-न्यून अंगुल का असंख्यातवां भाग, उत्कृष्ट अधिक-सेअधिक असंख्य क्षेत्र (सम्पूर्ण लोकाकाश) और शक्ति की कल्पना करें तो लोकाकाश के जैसे असंख्य खण्ड उसके विषय हो सकते हैं। ३. काल की दृष्टि से एक आवलिका का असंख्यातवां भाग, उत्कृष्ट असंख्य अवसर्पिणीउत्सर्पिणी काल । ४. भाव की दृष्टि से जघन्य अनन्त-भाव पर्याय, उत्कृष्ट अनन्त भाव-सभी पर्यायों का अनन्तवां भाग। e ५६ विशेषावश्यक भाष्य वृत्ति १६८ । ५७ तत्त्वार्थसूत्र। -पं० सुखलाल जी, पृ० ३५-३६ । ५८ रूपिष्वधेः । -तत्त्वार्थसूत्र ११२८। وجه تم تعيين ميحهغهتماعيغر فمفعل فاعتقحمهعبعبع فرخة عن عمه ماهر فرع عراه مع مرحععمععيمه M it अाआ आ आ wrviewers Arraimiya Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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