Book Title: Gyan Atma ka Gun bhi Swarup bhi Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf View full book textPage 1
________________ ज्ञान : आत्मा का गुण भी, स्वरुप भी - उपाध्याय अमरमुनि शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया-'आत्मा का स्वरूप क्या है?' गुरु ने तत्व ज्ञान की गंभीर गांठ खोलते हुए बताया-ज्ञानमयो हि आत्मा-आत्मा ज्ञानमय है। ज्ञान ही उसका स्वरुप है, ज्ञान ही उसका गुण है। तात्पर्य यह हुआ, कि ज्ञान आत्मा का स्वभाव है। स्वभाव वस्तु से दूर नहीं होता। जैसे ताप अग्नि से अलग नहीं रह सकता, प्रकाश सूर्य से भिन्न नहीं हो सकता। कोई कहे अग्नि तो है, पर उष्ण नहीं है, सूर्य आकाश में चमक तो रहा है, पर अभी तक अंधकार छाया हुआ है यह बात नितान्त गलत है। स्वभाव कभी है कभी नहीं, यह नहीं हो सकता। स्वभाव तो सर्व काल और सर्वदेश में समान रुप से रहता है। गुरु ने जब कहा-'ज्ञानमयो हि आत्मा' तो एक नया प्रश्न और खड़ा हो गया? जब ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, तो फिर एकेन्द्रिय और निगोद अवस्था में आत्मा जड़वत् ज्ञान-शून्य क्यों प्रतीत होता है? न उस में कुछ संवेदनशीलता प्रतीत होती है और न सुख-दु:ख के प्रति चंचल चेतना। यह शून्यता और स्थिरता ज्ञान का अभाव प्रकट नहीं करती है? प्रश्न का समाधान देते हुए कहा गया है-चेतना प्रत्येक आत्मा में समान रुप से होते हुए भी कर्म के आवरण के कारण किसी में कम विकसीत प्रतीत होती है, और किसी में अधिक। सर्वज्ञ आत्मा में वह चैतन्य रुप विकसित होता है। ज्ञान की शक्ति को आच्छादित करने वाले आवरण को ज्ञानावरण कहते हैं। 'ज्ञानावरण की व्याख्या समझने पर उक्त-प्रश्न का स्वयं समाधान हो जाएगा। 'ज्ञानावरण' का अर्थ अज्ञान या ज्ञानाभाव नहीं है। क्योकि जो आज ज्ञान नहीं है, वह पहले न अनन्त भूत में कभी ज्ञान था और न अनन्त भविष्य में कभी ज्ञान हो सकेगा। अत: जब कर्मो का नामकरण करने का प्रश्न आया, तो उन्होंने चेतना के अर्ध विकास को ज्ञानाभाव नहीं बताया, पर 'ज्ञानावरण-ज्ञान का आच्छादन बताया। ज्ञानावरण, दर्शनावरण दो कर्म हैं और उसका अर्थ -ज्ञान तो है, पर उसके ऊपर एक आवरण आया हुआ है। दर्शन तो है, पर उसके ऊपर एक आवरण आ गया है। 'आवरण' आ गया इसका अर्थ है, कि आवरण भी एक वस्तु है, वस्तु भी एक सत्ता है, एक शक्ति है। किसी वस्तु को मुट्ठी में बन्द करके कहा जाए कि उसको बन्द कर दिया है। वस्तु पर एक ढक्कन या वस्त्र डालकर कहा जाए, कि उस पर आवरण डाल दिया है। यह शब्द ध्वनित करता है, कि जो शक्ति है, एक सत्ता है, वह तो विद्यमान है, उसका नाश नहीं हुआ है, किन्तु उसे आवृत कर दिया गया है। 'आवरण' शब्द को व्याकरण की दृष्टि से देखेंगे, तो यह स्पष्ट हो जाएगा - वस्तु जो एक शक्ति या सत्ता है, उसके चारों ओर एक आच्छादन-ढक्कन डाल दिया गया है। उसके मुँह पर पर्दा डाल दिया गया है। नाश और विलय-वस्तु के अभाव का द्योतक है, वस्तु की सत्ता की अस्वीकृति है। किन्तु आवरण के उच्चारण में-'वस्तु की सत्ता का स्वीकार है; इन्कार नहीं, इकरार है। बादल आकाश में मंडरा रहे है, काली - काली घटाएँ छा रही हैं और विस्तृत होती हुई पूरे नीले आसमान को ढंक लेती हैं। सूर्य भी उसके अंचल में छिप जाता है, बादलों की काली-नीली चादर ने उसको आच्छादित कर लिया है। किन्तु, बादलों के इस आवरण का अभिप्राय यह तो नहीं है, कि सूर्य ही समाप्त हो गया। सूर्य विद्यमान है, उसका कसौटी पर कसे जाने का भाग्य कुंदन को ही मिलता है, कथिल को नही। १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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