Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ २३० गुरुतत्त्वसिद्धिः जह दिणरत्तिं सम्मं मिच्छं पुण्णं तहेव पावं च । तह चेव सुगुरु कुगुरु मण्णह मा कुणह मय(इ)मोहं ।।१३।। चरणस्स नव य ठाणा इह य पमत्तापमत्तअहिगारो । तत्थ अपमत्तविसयं कह लम्बेइ इत्थ एगविहं ।।१४।। होइ पमत्तम्मि मुणी चउक्कसायाण तिब्वउदयम्मि । स पमत्तो तेसिं चिय अपमत्तो होइ मंदुदए ।।१५/१।। पमत्ते नोकसायाण उदएणं इत्थ चरणजुत्तो वि । अट्टल्झाणोवगओ तेण विणा होइ अपमत्ते ॥१५/२।। नाणंतरायकम्मं लम्बेइ तिविहं पमत्त-अपमत्ते । बीयं छच्चउ पण नव-भेएहिं बंधुदयसंते ॥१६॥ तेरिक्कारस जोगा हेउणो पुण हवंति छ चउवीसा । लेसाओ छच्च तिण्णे य हुंति पमत्तापमत्तेसु ॥१७॥ अविरय विरयाविरएसु सहसपुहुत्तं हवंति आगरिसा । विरए य सयपुहुत्तं लन् ति पमायवसगेण ।।१९।। ठिइठाणे ठिइठाणे कसायउदया असंखलोगसमा । अणुभागबंधठाणा इय इक्किक्के कसाउदए ॥२०॥ कम्मस्स य पुण उदए अवराहो होइ नेव तचिरहे । इय जाणिऊण सम्म मा कुज्जा संजमे अरुइं ॥२१।। अपमत्तपमत्तेसुं अंतमुहत्तं जहक्कम कालो । समणाण पुवकोडी ता लन्भइ कह ण एगविहं ।।२२।। पढमे य पंचमंगे य वियारिए इत्थ होइ सुहबुद्धी । ता आलंबिय भाउय ! एगपयं गच्छ मा मिच्छं ॥२३॥ साहूणं विणएणं वयणपरेणं च तह य सेवाए । समणोवासगनामं लब्भइ न हु अण्णहा कह वि ॥२४॥ जो सुणइ सुगुरुवयणं अत्थं वावेइ सत्तखित्तेसु । कुणइ य सदणुट्टा(ट्ठा)णं भण्णइ सो सावओ तेण ।।२५।। जं निज्जइ जिणधम्मं जं लब्भइ सुत्त-अत्थपेयालं । सो पुण साहुपसाओ ता मा होहिसि कयग्घेण ।।२६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260