Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust
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२३२
गुरुतत्त्वसिद्धिः केई सुबुद्धिनायं परिभाविय पण्णविंति उच्चारं । कारंति य सा सुंदरबुद्धी न हु होइ निउणमई ॥४१।। जं पुण सुगुरुसमीवे सुबुद्धिणा गहिय-देसियं धम्म । तेण समं समसीसी अलद्धगुरुणो न ते होई ॥४२।। जे पुण अलद्धगुरुणो जहा तहा कारविंति उच्चारं । ते जिणमइ(य)पडिणीया न हुंति आराहगा कह वि ॥४३॥ साहीणे साहुजणे गिहीण गिहिणो वयाइं जो देइ । साहुअवण्णाकरणा सो होइ अणंतसंसारी ॥४४॥ गिहिणो गिहत्थमूले वयाइं पडिवज्जओ महादोसो । पंचेव सक्खिणो जं पच्चक्खाणे इमे भणिया ॥४५।। अरिहंत सिद्ध साहू देवो तह चेव पंचमो अप्पा । तम्हा गिहत्थमूले वयगहणं नेव कायव्वं ॥४६॥ जं सच्छंदमईए रएसु उच्चारिएसु पुण तेसिं । जइ कह वि होइ खलणा ता कह सुद्धी गुरूहि विणा ॥४७॥ , लज्जाइ गारवेण इ बहुस्सुयमएण वावि दुच्चरियं । जे न कहंति गुरूणं न हु ते आराहगा हुंति ॥४८॥ कच्छमाईकिरिया सड्डाणं जाव अणसणं भणिया । साहुवयणेण किज्जइ अण्णो पुण किं वहइ गव्वं ? ॥४९।। संपइ भणंति केई जीवा पावंति अस्सुयं धम्म । सच्चं पुण ते मूढा सुयपरमत्थं न याणंति ॥५०॥ पत्तेयबुद्धिलाभेण जाईसरणेण ओहिनाणेण । दगुण पुव्वसूरि तो पच्छा लहइ जिणधमं ॥५१॥ तत्थ य साहुपसाओ नेयम्बो इत्थ सत्थगारेहिं । सच्छंदमईणं पुण वड्डइ कुमई न संदेहो ।।५२।। संपइ केई सड्डा गाढं किरियं कुणंति गुरुरहिया । न निस्साइं कुणंते हीलंता हुंति अइमूढा ।।५३।।

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