Book Title: Gudartha Dohao ane Anya Samagri Paramparagat Lokvarsanu Jatan
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ अनुसन्धान ५० (२) अगर जो तूमने वचन दिया था, वचन से पड गयें जूटें नीम सरीखा कडवा हो गये, नीबू से दूने खटे सज्यन चाल्या चाकरी, हाथ ली बिंडूक, के तो लारां ले चलो, के कर जावो दो टूक सज्यन हुँ थारी गली, फीर फीर हेला देत शब्द सुणावा और कुं, नाम तुमारा लेत सोरठ ऊभी गोखमें, दांता चूप दमक जाणे हणमत्त वांकडो, लूंटी लायो लंक वीजां वाडी गूलाबकी, मांहे लूंग घणा ___ थाम सि चित चोरीया, मा ने पुरूष घणा सोरठ पाल तलावकी, मांहे गार घणी थामा से चित चोरियो, मा ने नार घणी वीजां वेडी रांडका, दे दे थाकी शीष घर घेवर वासी रहे, पर घर मागे भीख मीठाश वचने बोलीये, सुख उपजे कच्छ और वशीकरण औ मंत्र हे, तजो वचन कठोर जो सुख चाहो शरीर को, छोडो बातां चार चरि चुगली जामनी, और बीरानी नार क्रोड पुरव लग तप करो, भावे खालो गाल उसमें नफा बहोत है, मेटो मनकी झाल। शुकर कुकर ऊंट खर, ये पशु वन में चार तुलसी दया धर्म बीन, असे ही नर नार वहेता पानी नीरमला, पडा गंदोला होय साधु तो रमता भला, डाग न लागे कोय बांध्या जल तो नीरमला, जो कुछ गहेरा होय साधु तो थरता भला, जो मन समता होय बुगला से नीर बिगडिया, बंदर सु बन राय भोम सपुता बाडुड, वंस कुपुता जाय

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