Book Title: Gudartha Dohao ane Anya Samagri Paramparagat Lokvarsanu Jatan
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ १६ अनुसन्धान ५० (२) चाकर चूके चाकरी, पण स्वामी न चूके वाच अवगुण उपरे गुण करे, ते मणी और कांच कृष्णागर' बाल्यो थको, सामो दीये सुवास कोश नाखीये नीरमां, तो पण जल दे तास हुँ छु पगनी मोजडी, आप शिरना मोड । हुं कंटाळी बावळी, तमे तो सुर तरू छोड सज्यन समये परखीये अपना कुल की रीत लायक सेंती कीजिये वेर, वहेवार ओर प्रीत में जाण्युं तूम कनक हो, ओर तूमकुं दीनो मान कसी कसोटी कस दीया, पीतल नीकस्यो नीधान तूम आंबा हम आंबली, तुम सरवर हम पाज रीझ बूझ कर राखीयो, बांह्य ग्रह्याकी लाज प्रीत न्यां पडदा नही, पडदा ज्यां नही प्रीत प्रीत राखे पडदा रखे, आ तो बडी अनीत पाणी विण मीन तरफडे, तेम तुं विण हुं थइश तुज विण कोनी पास हुं, दिलनी कोहोने दइश ज्युं हेमवंत ऋतु शमे, कंथ कान्त ले सोय त्यों हमरो मन तुम विशे, लपट रह्यो नभ तोय हम चावत तूम मिलन कुं, और तुम तो बडे कठोर तुम विना हम तरसत हे, जुं जल बिना मोर प्रतमली(प्रीत भली?) पंखी तणी, और रूपे झूडो मोर प्रीत करीने परहरि, मानुष नहि ते ढोर प्रीत छीपाइ नही छीपे, पलकमें करे प्रकाश दाबी दूबी ना रहे, कस्तुरी की बास प्रीत पूरानी नही पडे, जो उं तमसे लाग सो वरसा जलमें रहे, चकमक तजे न आग प्रीती असी कीजिये, जैसी गुडीया दोर कांटयाथी फीर पांगुरे, लीबु जांबु बोर १. काळो अगर

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