Book Title: Gudartha Dohao ane Anya Samagri Paramparagat Lokvarsanu Jatan
Author(s): Niranjan Rajyaguru
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 13
________________ मार्च २०१० सुण सज्यन ओक विनती, वारंवार करूं तोय जो जो कीनी प्रीतडी, अब दगो मत दीजे मोय मित्र असा कीजिये, जीसमें गुण बत्तीश काम पड्यां बिछडे नही, बदले खरचे शीश मिलना जगे अनूप है, जो मिल जाने होय पारस से लोहा मीले, छीन में कंचन होय कागद थोडो हित घणो, कब लग लीखुं वणाप सागरमें पाणी घणो, गागरमें न समाय कागद थोडो पत्ति जो लीखे, जीनके अंतर होय तन मन जीवन ओक हे, लोक देखा न होय कागद नही शाही नही, नहि लिखी की रीत सो पतियां केसे लिखुं, घटी तूमारी प्रीत कनक पत्र कागद भयो !, मिसि भइ माणक मोल ! कलम भइ केइ लाखकी !, कयों नहि लिखे दो बोल ? हाथ कंपे लिखणी मिठो, और मूखसे कही न जाय सुध आवे छाती फटे, सो पतियां न लिखी जाय सज्यन युं मत जाणजो, बीछडया प्रीत घट जाय वेपारीका व्याज ज्युं, दिन दिन वधती जाय सज्यन युं मत जाणजो, तुम बिछडया मोय चेंन जेसी भठ्ठी लोहारकी, सिलगत हें दिन रेन सज्यन हुं थारा थकी, भावे ज्युं ही राख नारंगीनी फाक ज्युं, न्यारी न्यारी चाख सज्यन कचेरी छांड दो, अवर वसावो गाम चोडे चुगली हो रही, ले लेशी वयरी' थारो नाम नही कचेरी छांडस्यां, नहीं अवर वशायां गाम दसरा वारो बोकडो, मरशी मोठे ठाम १. वेरी । दील ज्यों तमारा मोम सरीखा, तुम भी हमकुं चाहते थे खाते थे पीते थे जानी, अक जगा में रहते थे १७

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