Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 5
________________ है । उसको गृहस्थ-धर्म में सम्मिलित किये बिना गृहस्थ धर्म अपूर्ण ही रह जाता है । वह त्रुटि यहां दूर कर दी गई है । इसी प्रकार अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि व्रतों संबन्धी पूज्यश्री के कतिपय तेजपूर्ण विचार, जो पहले इनके साथ प्रकाशित नहीं हुए थे, यहां शामिल कर दिये गये हैं । आशा है, इस परिष्कार से पाठकों को विशेष लाभ होगा । श्री जवाहराचार्य जी के व्याख्यानों में हमें एक क्रान्ति का उद्घोष करने वाले क्रान्तिकारी, सुप्त समाज को जगाने वाले महान् सुधारक, उत्पीड़ितों एवं दुःखों से व्याकुल जनसमूह को धैर्य और साहस बंधाने वाले सहायक तथा जन्ममरण की पीड़ाओं से त्रस्त जगत् को अमरत्व का संदेश देने वाले शांतिदूत के दर्शन होते हैं । प्रस्तुत प्रकाशन का सम्पादन समाज के सुपरिचित साहित्यसेवी पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने किया है, जिससे प्रकाशन अधिक उपयोगी हो गया है । इस पुस्तक को प्रकाशित करने में श्री जैन जवाहर मित्र मंडल (व्यावर ) का बहुमूल्य हार्दिक सहयोग मिला है । अतः हम मंडल के अत्यन्त आभारी हैं । यदि समाज ने इस प्रकाशन का अधिक से अधिक स्वागत किया तो हमें भविष्य के लिए अधिक प्रेरणा और स्फूर्ति मिलेगी । ८७, धर्मतल्ला स्ट्रीट कलकत्ता - १३. सरदारमल कांकरिया, मन्त्री सम्यक् ज्ञानमन्दिर

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