Book Title: Gruhastha Dharm Part 02 Author(s): Shobhachad Bharilla Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh View full book textPage 9
________________ प्रतिभाशाली महापुरुषों में अग्रगण्य थे । उनकी प्रतिभा अनोखी और सर्वतोमुखी थी। उन्होंने अपने साधु-जीवन में लम्बे समय तक प्रवचन किये। जब मैंने उन लिपिबद्ध किये गये प्रवचनों को देखा तो लगा कि यह अपूर्व निधि फाइलों में पड़ी-पड़ी सड़ने को नहीं है । इसे दुनिया को लुटा देना चाहिए । सहयोग मिला और सम्पादन-कार्य प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भ की तीन किरणें पूज्य श्री के जीवन काल में प्रकाशित हो सकी । पूज्य श्री देवलोक पधार गये, मगर सेठ श्री चम्पालाल जी सा० बांठिया के उत्साह से सम्पादन कार्य अग्रसर होता ही चला गया । यह क्रम भले ही मन्द पड़ गया है, मगर अब तक चालू है। सेठ श्री सरदारमल जी सा. कांकरिया की साहित्य-भक्ति के फलस्वरूप यह ३२ वीं और ३३ वी किरण प्रकाश में आ रही हैं । इनके प्रकाशित होने से गृहस्थ-धर्म तीन भागों में समाप्त हो रहा है । __ इन तीनों भागों में सम्यग्दर्शन, श्रावक के बारह व्रतों और छह आवश्यकों पर पूज्य श्री के प्रवचन हैं । इनमें से बारह व्रत पहले मंडल की ओर से पृथक्-पृथक् प्रकाशित हुए थे । इस संस्करण में उनमें भी कुछ न्यूनाधिकता की गई है । विस्तार-भय से कुछ कथाएं कम कर दी गई हैं । वे कयाएं पाठकों को ‘उदाहरणमाला' में मिल जाएंगी। जो कथाएं अत्यावश्यक प्रतीत हुईं, उन्हें रहने भी दिया गया है । इसी प्रकार अहिंसा आदि व्रतों सम्बन्धी पूज्य श्री के प्रभावशाली वचन नये भी सम्मिलित कर दिये गये हैं। आशा है, इससे गृहस्थ-धर्म के जिज्ञासुओं को विशेष लाभ होगा।Page Navigation
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