Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ गृहस्थ -धर्म के तीनों भाग पढ़कर पाठक समझ सकेंगे कि श्रावक का कितना दायित्व है, कितना कर्तव्य है और क्या गौरव है ? ये प्रवचन श्रावक जीवन का परिपूर्ण चित्र हमारे सामने उपस्थित करते हैं । जो गृहस्थ ध्यानपूर्वक इन्हें पढ़ेंगे, उनके अन्तःकरण में एक बार अवश्य यह प्रश्न उत्पन्न होगा कि दिन-रात साधुओं के आचार की आलो चना करने वाले गृहस्थ कितने पानी में हैं ? जो श्रावक चाहते हैं कि हमारे साधु शास्त्र - प्रतिपादित आचार से इंच भर भी इधर-उधर न हों, वे अपने विषय में भी यही क्यों नहीं सोचते ? इसका अभिप्राय यह नहीं कि हम साधुओं से ऐसी आशा न रक्खें, मगर हम श्रावकों को भी शास्त्रप्रतिपादित श्रावकाचार का अनुसरण करना चाहिए । तभी हम दूसरों की आलोचना करें तो कदाचित् शोभा दे । भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित श्रावकाचार इस लोक और परलोक - दोनों दृष्टियों से प्रत्यन्त कल्याणकारी है । जो उसे अपने जीवन में उतारेगा उसका यह जीवन भी धन्य बन जायेगा और ग्रागामी जीवन भी । फिर पूज्य श्री ने उसका जिस ढंग से विवेचन किया है, वह भी बड़ा ही मार्मिक है । इस अशांत विश्व में अगर शांति का संचार कभी होना है तो वह तभी होगा जब दुनिया के लोग उन सिद्धान्तों पर चलेंगे, जो यहां प्रतिपादित किये गये हैं । हम

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 362