Book Title: Gita Darshan Part 07
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ हैं / प्रत्येक व्यक्ति अनूठा और अद्वितीय / तुलना का कोई उपाय नहीं / मीरा का नाच / कृष्ण की बांसुरी / जीसस की सूली / महावीर का मौन / परम अनुभूति एक, परंतु अभिव्यक्ति अलग-अलग / अभिव्यक्ति का माध्यम है-व्यक्तित्व / पागलखाने में पागल होकर रहना ही उचित है / बुद्ध पागलखाना छोड़कर बाहर हो गए / कृष्ण पागलों के बीच ही रहे / पागलों की ही भाषा बोलना / होशपूर्वक, अभिनय जानते हुए धोखा देना / खेल के नियम को मान कर चलना / कृष्ण बहुत क्रांतिकारी संन्यासी हैं / आप अपनी नियति को पहचानें / लाओत्से की संबोधि में छलांग-सीधे तमस से / लाओत्से की साधना है : आलस्य में होश / जीसस और मोहम्मद की छलांग-रजोगुण से गुणातीत में / बुद्ध और महावीर का व्यक्तित्व सत्व गुण प्रधान / श्वास लेना, पानी पीना, भोजन लेना-सभी में हिंसा है / गेहूं का बीज भी अंडा है / तम व सत्व प्रधान धर्म ज्यादा फैल नहीं सकते / रजस प्रधान धर्म-ईसाइयत और इस्लाम सारी दुनिया में फैले / कृष्ण बेबूझ हैं क्योंकि उनमें तीनों गुण समान हैं / कृष्ण के साथ अन्याय-उन्हें एक गुण-प्रधान बनाना / बुद्ध, महावीर, लाओत्से का इकहरा व्यक्तित्व / कृष्ण का तेहरा व्यक्तित्व / यदि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मुक्ति स्वयं खोजनी है, तो सदगुरु को समर्पण करने का क्या अर्थ होता है? / समर्पण के निर्णय की परम स्वतंत्रता / समर्पण सबसे बड़ा संकल्प है / अर्जुन जैसा क्षत्रिय ही समर्पण का निर्णय ले सकता है / समुराई–जापान के अदभुत क्षत्रिय / मारने के पहले मरना सीखना / सब छोड़ते ही अहंकार गिर जाता है / गुरु को कुछ करना नहीं पड़ता / आखिरी कृत्य-समर्पण / समर्पण पुनर्जन्म है-परमात्मा में / तमोगुण के कारण भीतर अंधेरा दिखाई पड़ना / सत्व गुण के जगने पर भीतर हलका प्रकाश / आत्मिक प्रकाश को देखने के लिए सत्व की आंख चाहिए / तमोगुण से बोझिलता और सत्व गुण से हलकापन / तमोगुण के कारण कर्तव्य कर्म में अप्रवृत्ति / तामसी व्यक्ति द्वारा भाग्य का बहाना / केवल सत्व गुणी व्यक्ति ही होशपूर्वक मरता है / त्रिगुण और पुनर्जन्म का गुण / मृत्यु-क्षण की भावदशा-जीवन भर का निचोड़ / सम्यक मृत्यु को अर्जित करना। ON रूपांतरण का सूत्र: साक्षी-भाव ...83 तमस और रजस से गुणातीत अवस्था में जाना किस प्रकार संभव है? / सभी गुण बीमारियां हैं / स्वास्थ्य है-गुणातीत हो जाना / हर गुण के अपने लाभ-और अपनी हानियां / रजोगुण का नकारात्मक उपयोग–राजनीति में / अपने गुण के विधायक रूप का उपयोग कर लें/ गुणों का प्रभाव केवल शरीर और मन तक / आप किस गुण में हैं-इसे पहचानें / गलत शिष्य-गलत गुरु / गलत गुरु से होने वाली महानतम क्षति / भीतर के यथार्थ की स्वीकृति / अपनी सबसे बड़ी कमजोरी का पता लगाएं / किसी भी गुण से छलांग संभव / गुण के अनुसार व्यक्ति की साधना अलग-अलग / तपश्चर्या केवल राजसी व्यक्तियों के लिए उपयोगी / बुद्ध के लिए सब तपश्चर्या व्यर्थ गई / तप के गिरते ही बुद्ध समाधिस्थ हो गए / तमस हो, तो उसका स्वीकार और उसका साक्षी होना / तमस में होश जुड़ जाए, तो रूपांतरण घटित / राजसी व्यक्ति की बेचैनी नींद में भी जारी / पश्चिम के स्लीप लैब्स / रजोगुण और निद्रा में चलने का रोग/ तमोगुणी, रजोगुणी और सतोगुणी की भिन्न-भिन्न निद्रा / तमोगुणी की मूर्छा / रजोगुणी की बेचैन क्रियाएं / राजसी व्यक्ति रात को ताजा / सात्विक व्यक्ति की शांत नींद / पश्चिम की राजसी सभ्यता / जीवन का उभार देर रात में / पूरब की सात्विक सभ्यताः ब्रह्म मुहूर्त में जागना / सात्विक व्यक्ति सुबह सबसे ज्यादा ताजा / एक सात्विक संस्कृति बनाने का प्रयास-मनु द्वारा / पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां ज्यादा तामसिक / गहरी नींद में दो घंटे देह का तापमान गिरना / सात्विक व्यक्ति के लिए निष्क्रिय ध्यान उपयोगी / राजसी व्यक्ति के लिए तपश्चर्या जरूरी / सात्विक कर्म का फलः सुख, ज्ञान, वैराग्य / करने का पागलपन / सात्विक कर्म-करुणाजन्य / रजोगुणी कर्म का परिणाम-दुख / स्टैलिन का दुखी जीवन / सात्विक कर्म से वैराग्य कैसे / स्वयं में सुख-और परावलंबन का छूटना / व्यस्तता में दुख का विस्मरण / तामस कर्म का फलः अज्ञान / रजोगुणी कर्म का फलः लोभ / जितना राजसी मुल्क-उतना ज्यादा विज्ञापन /स्वर्ग और नर्कः मनोदशाएं हैं / भगवत्ता है: मन के पार गुणातीत अवस्था।

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