Book Title: Gautamiya Kavyam
Author(s): Rupchandra Gani, Kanakvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 14
________________ १३ कोईपण पुस्तकप्रकाशकसंस्था के व्यक्तिना प्रकाशनकार्यनी साथे, ते ते पुस्तकोना संपादकना संपादनकार्यनो पण संबन्ध संकळायेलो रहे छे. प्रस्तुत पुस्तकना प्रकाशनकार्यनी साथे संपादकतरिके संपादनकार्यमां मारो संबन्ध आ मुजब संकळायो: गतसाल (वि० सं० १९९५)नुं अषाढ चातुर्मास, पू० परमगुरुदेवोनी आज्ञा मुजब मुंबई लालबाग-भूलेश्वर खाते थयु, ते अवसरे पूज्यपाद परममाननीय आचार्यदेव श्रीमद् विजयक्षमाभद्रसूरि महाराजनी हितद सूचनाथी आ पुस्तकना संपादनकार्यमां में मेहनत लीधी'. ___ आ प्रसंगे एक स्पष्टता करी दउं. संपादनकार्यने अंगेनो मने तेवा प्रकारनो खास अनुभव नथी. आ कारणे, आवा ग्रन्थोनुं संपादनकार्य मारे माटे आ विषयनी नवी शरूआत गणी शकाय. ___ हुं जाणु छु; कोईपण ग्रन्थनु संपादन के संशोधन वगेरेनुं कार्य, ए अगत्यनी जुवाबदारी भरेलुं गणाय छे. अति सावधानी अमुक महेनत; अने सर्वतोमुखी बहुश्रुतता वगेरेना सुन्दर सहकारना योगे ग्रन्थy संपादनकार्य सफळ अने संतोषप्रद बनी शके छे. जो के प्रस्तुत काव्यग्रन्थ- संपादनकार्य, आ उच्चतर स्थितिए न पहोंची शक्युं होय ए संभाव्य छे. ___ छतां य प्रस्तुत संपादनकार्य, जे विद्वान जनसमाजने संतोषी शके ते रीतिये थयुं छे, तेना आदिकारण तरिके पूजनीय शान्तमूर्ति समर्थ विद्वान आचार्यदेव श्रीमद् विजयक्षमाभद्रसूरीश्वरजी महाराज छे. तेओश्रीनो विशाल अनुभव, प्रौढ प्रतिभा अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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