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कोईपण पुस्तकप्रकाशकसंस्था के व्यक्तिना प्रकाशनकार्यनी साथे, ते ते पुस्तकोना संपादकना संपादनकार्यनो पण संबन्ध संकळायेलो रहे छे. प्रस्तुत पुस्तकना प्रकाशनकार्यनी साथे संपादकतरिके संपादनकार्यमां मारो संबन्ध आ मुजब संकळायो:
गतसाल (वि० सं० १९९५)नुं अषाढ चातुर्मास, पू० परमगुरुदेवोनी आज्ञा मुजब मुंबई लालबाग-भूलेश्वर खाते थयु, ते अवसरे पूज्यपाद परममाननीय आचार्यदेव श्रीमद् विजयक्षमाभद्रसूरि महाराजनी हितद सूचनाथी आ पुस्तकना संपादनकार्यमां में मेहनत लीधी'. ___ आ प्रसंगे एक स्पष्टता करी दउं. संपादनकार्यने अंगेनो मने तेवा प्रकारनो खास अनुभव नथी. आ कारणे, आवा ग्रन्थोनुं संपादनकार्य मारे माटे आ विषयनी नवी शरूआत गणी शकाय. ___ हुं जाणु छु; कोईपण ग्रन्थनु संपादन के संशोधन वगेरेनुं कार्य, ए अगत्यनी जुवाबदारी भरेलुं गणाय छे. अति सावधानी अमुक महेनत; अने सर्वतोमुखी बहुश्रुतता वगेरेना सुन्दर सहकारना योगे ग्रन्थy संपादनकार्य सफळ अने संतोषप्रद बनी शके छे. जो के प्रस्तुत काव्यग्रन्थ- संपादनकार्य, आ उच्चतर स्थितिए न पहोंची शक्युं होय ए संभाव्य छे. ___ छतां य प्रस्तुत संपादनकार्य, जे विद्वान जनसमाजने संतोषी शके ते रीतिये थयुं छे, तेना आदिकारण तरिके पूजनीय शान्तमूर्ति समर्थ विद्वान आचार्यदेव श्रीमद् विजयक्षमाभद्रसूरीश्वरजी महाराज छे. तेओश्रीनो विशाल अनुभव, प्रौढ प्रतिभा अने
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